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यदि आप किसान हैं या फिर उचित दर की दुकान यानी कोटेदार के यहां से राशन लेते होंगे तो आपने जिला खाद्य विपणन अधिकारी के बारे में अवश्य सुना होगा। यह भी हो सकता है आप लोगों में से कुछ लोगों ने खाद्यान्न क्रय केंद्र में अनाज के क्रय यानी खरीदी में धांधली से परेशान होकर जिला खाद्य विपणन अधिकारी से शिकायत भी की होगी। लेकिन क्या आपको पता है कि जिला खाद्य विपणन अधिकारी कौन होता है और उसके कर्तव्य और दायित्व क्या होते हैं। यदि नहीं पता है तो कोई बात नहीं है। चलिए हम आपको बताते हैं।

जनपद के खाद्य और रसद विभाग के विपणन अधिकारी यानी मार्केटिंग इंस्पेक्टर के कारनामों के बारे में तो आपने सूना ही होगा। गलत और मनमाने ढंग से धान की खरीदी और कोटेदारों से मिली भगत करके राशन की कालाबाजारी करने के इनके कारनामों की चर्चा तो हर तरफ होती ही रहती ही है। लेकिन बहुत से लोगों को अभी पता नहीं है कि विपणन निरीक्षक क्या होता है और यह किस प्रकार के कर्तव्यों का निर्वहन करता है। ,,, चलिए हम आपको विस्तार से बताते हैं,,,।

यदि आप देश के किसी महानगर में रहते हैं तो आपको पता होगा कि महापौर यानी मेयर कौन होता है। हो सकता है आपने महापौर के निर्वाचन के लिए मतदान भी किया होगा, यदि किसी व्यक्ति को नहीं पता है कि महापौर कौन होता है, तो कोई बात नहीं है।,,,चलिए हम आपको विस्तार से बताते हैं,,,। 

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माना जाता है कि लगभग सभी विभागों से इंस्पेक्टर राज का अंत हो चुका है, लेकिन खाद्य एवं रसद विभाग का सप्लाई इंस्पेक्टर यानी पूर्ति निरीक्षक इस मामले में अनोखा है। लोगों का कहना है कि वह मन का राजा होता है, वह चाहे तो आपका राशन कार्ड बन जाएगा और राशन भी मिल जाएगा, और यदि वह न चाहे तो फिर आप अपनी समस्या को लेकर किसी भी वरिष्ठ अधिकारी का चक्कर लगाते रहिए। इससे उन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।,,, चलिए हम आपको विस्तार से बताते हैं कि सप्लाई इंस्पेक्टर क्या होता है,,,।

नगर या गांव में, जहां भी आप रहते हैं वहां पर आप उचित दर की दुकान यानी राशन की दुकान से अवश्य परिचित होंगे। ऐसी आशा है कि इस कोरोना काल में आपको उचित दर पर खाद्यान्न यानी राशन भी मिल रहा होगा। लेकिन यदि किसी को भी खाद्यन्न नहीं मिल रहा है तो वह अपने जिले यानी जनपद के जिला पूर्ति अधिकारी से उचित दर की दुकान के विक्रेता के विरुद्ध लिखित शिकायत कर सकता है। और कार्रवाई की मांग भी कर सकता है। ,,,चलिए हम आपको विस्तार से बताते हैं,,,,।

आपने हाईस्कूल और इंटरमीडिएट की पढ़ाई के समय शिक्षा विभाग के अधिकारी, जिला विद्यालय निरीक्षक के विषय में अवश्य सुना होगा। हो सकता है कई लोगों ने अपने विद्यालय में हो रही किसी समस्या के समाधान को लेकर भेंट भी की होगी। लेकिन फिर भी यदि आप लोगों को जानकारी नहीं है कि जिला विद्यालय निरीक्षक कौन होता है और उसके कार्य क्या-क्या होते हैं, तो कोई बात नहीं है।,,,चलिए हम आपको विस्तार से बताते हैं,,,,।

आपने जनपद के बेसिक शिक्षा अधिकारी के बारे में अवश्य सुना होगा । यह भी हो सकता है कि आप लोगों में कई लोगों ने प्राथमिक विद्यालय के अध्यापकों की मनमानी के विरुद्ध कार्रवाई की मांग को लेकर बेसिक शिक्षा अधिकारी से शिकायत भी की होगी। जिससे प्राथमिक विद्यालय के बच्चों को सुचारु रुप से अच्छी शिक्षा मिल सके। लेकिन क्या आपको जानकारी है कि बेसिक शिक्षा अधिकारी कौन होता है? उसके कार्य क्या होते हैं? यदि आपको नहीं पता है तो कोई बात नहीं। ,,,,चलिए हम आपको विस्तार से बताते हैं,,,,।

आप किसी शहर यानी नगर में रहते हैं तो आप आपने पार्षद के बारे में अवश्य जानते होंगे। और हो सकता है अपने मोहल्ले के किसी विकास के कार्य को लेकर पार्षद से भेंट भी की होगी। क्योंकि वह ग्राम पंचायत की तरह आपके मोहल्ले के विकास कार्यों को करवाने के लिए उत्तरदायी होता है। लेकिन अभी भी किसी व्यक्ति को यह पता नहीं है कि पार्षद क्या होता है और उसके कार्य क्या होते हैं तो कोई बात नहीं।,,, चलिए हम आपको बताते हैं,,,।

हमारे देश में सामान्य रुप से देखने को मिलता है कि जब कोई साधारण व्यक्ति किसी भी घटना को लेकर पुलिस थाना जाता है, तो बहुधा यानी अक्सर पुलिसवाले उसकी एफआईआर यानी प्रथम सूचना रिपोर्ट पंजीकृत नहीं करते हैं। यदि वह एफआईआर पंजीकृत भी कर भी लेते हैं तो घटना पर कोई कार्रवाई नहीं करते हैं। ऐसी दशा में पीड़ित व्यक्ति के पास एक ही रास्ता बचता है कि वह जनपद के पुलिस प्रमुख, यानी पुलिस अधीक्षक से लिखित शिकायत करे और पुलिस थाने को संबंधित मामले में कार्रवाई करने का निर्देश देने की मांग करे। इसलिए आपके लिए यह जानना बहुत आवश्यक है कि पुलिस अधीक्षक कौन होता है और उसके अधिकार एवं कर्तव्य क्या होते हैं।

हमारे देश में पंचायती राज व्यवस्था के अंतर्गत गांव के विकास के लिए जिला पंचायत, क्षेत्र पंचायत और ग्राम पंचायत की स्थापना की गयी है। जिससे पंचायती राज व्यवस्था के माध्यम से पंचायतों के विकास में ग्रामीणों की प्रभावी भागीदारी को सुनिश्चित किया जा सके। और गांवों का विकास किया जा सके। इसके लिए जिला पंचायत के स्तर पर जिला विकास अधिकारी की नियुक्त की गयी है, जो ग्राम विकास विभाग की योजनाओं को लागू करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।,,,,चलिए हम आपको विस्तार से बताते हैं,,,,।

हमारे देश में पंचायती राज व्यवस्था के अंतर्गत गांव के विकास के लिए जिला पंचायत, क्षेत्र पंचायत और ग्राम पंचायत की स्थापना की गयी है। जिससे पंचायती राज व्यवस्था के माध्यम से पंचायतों के विकास में ग्रामीणों की प्रभावी भागीदारी को सुनिश्चित किया जा सके। और गांवों का विकास किया जा सके। इसके लिए जिला पंचायत के स्तर पर मुख्य विकास अधिकारी की नियुक्त की गयी है, जो ग्राम पंचायत के पंचायत सचिव की तरह ही जिला पंचायत के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।,,, चलिए आपको विस्तार से बताते हैं,,,,।

हमारे देश में पंचायती राज व्यवस्था के अंतर्गत ग्राम पंचायत, क्षेत्र पंचायत, और जिला पंचायत की स्थापना की गयी है। जिससे पंचायती राज व्यवस्था के माध्यम से सामान्य ग्रामीण जनता की लोकतंत्र में प्रभावी भागीदारी को सुनिश्चित किया जा सके। वहीं इस व्यवस्था को चलाने के लिए विकास खंड कार्यालय में खंड विकास अधिकारी के नीचे सहायक विकास अधिकारी पंचायत को नियुक्त किया गया है। जो गांव के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यदि आपको इसके बारे में जानकारी नहीं हैं तो कोई बात नहीं है चलिए हम आपको बताते हैं,,,,।

आप लोगों को जिला पंचायत राज अधिकारी के बारे में जानकारी नहीं हैं तो कोई बात नहीं,,, चलिए हम आपको विस्तार से बताते हैं कि जिला पंचायत राज अधिकारी कौन होता है। और उसके अधिकार और कर्तव्य क्या होते हैं।
 
 

अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की मौत के मामले में नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो ने जब से ड्रग्स रैकेट के मामले में रिया चक्रवर्ती से पूछताछ की है, तब से देशभर में नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो की काफी चर्चा हो रही है। कहा जा रहा है कि नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो की पूछताछ में रिया ने हिंदी सिनेमा के कई बड़े-बड़े कलाकारों का नाम लिया है। अब उन्हें जेल की हवा खानी पड़ सकती है। लेकिन अभी भी बहुत से लोगों को पता ही नहीं है कि नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो क्या है? ,,, चलिए हम आपको विस्तार से बताते हैं,,,,
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पूर्वी लद्दाख में पैंगोंग झील के दक्षिणी तट पर अब चीन की चालबाजी नहीं चलेगी। भारतीय जवानों ने रेज़ांग-ला, रेचिन-ला और ब्लैक टॉप की पहाड़ियों पर कब्‍जा कर लिया है। अब चीन के हर मूवमेंट पर हमारी नजर होगी। और ये सफलता हासिल हुई है भारत की खुफिया फोर्स, स्पेशल फ्रंटियर फोर्स के जरिए। हालांकि अभी बहुत लोगों को पता ही नहीं है कि भारत में इस तरह की कोई फोर्स है, जो चुपचाप गोपनीय तरीके से दुश्मनों के विरुद्ध अपने कार्य को अंजाम देती है।,,, चलिए हम आपको विस्तार से बताते हैं,,,,
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आपने अक्सर सुना और पढ़ा भी होगा कि हाई प्रोफाइल मामले में कोई व्यक्ति सर्वोच्च न्यायालय में गुहार लगाता है कि सरकारी एजेंसियों की रिपोर्ट में उसके साथ पूरा न्याय नहीं हुआ है या फिर सरकारी एजेंसियों द्वारा की गई जांच में कोई कमी नजर आ रही है। ऐसी स्थिति में सर्वोच्च न्यायालय विशेष जांच एजेंसी यानी एसआईटी के गठन का आदेश दे देता है, जिससे मामले की सही जांच हो सके और संबंधित व्यक्ति को न्याय मिल सके। ,,, चलिए हम आपको विस्तार से बताते हैं,,,
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हमारे देश में 'प्रवर्तन निदेशालय' यानि ईडी शब्द बहुत अधिक चर्चा में रहता है, आए दिन किसी न किसी नेता, व्यापारी या अधिकारी के यहां प्रवर्तन निदेशालय के छापे पड़ते रहते हैं, जिसके बारे में आप पढ़ा और सुना भी होगा। लेकिन फिर इस गैर संवैधानिक निकाय के बारे में बहुत कम लोगों को जानकारी है। ,,, चलिए हम आपको विस्तार से बताते हैं,,,,
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सीआईडी के बारे में तो आपने सुना ही होगा। देश के किसी भी राज्य में यदि कोई अपराध की घटना होती है तो इन अपराधों की जांच के लिए अलग-अलग पुलिस विभागों को जांच का उत्तरदायित्व सौंपा जाता है । CID एक पुलिस विभाग का खुफिया विभाग होता है। इसलिए यह भी अपराध की जांच में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। CID को प्रमुख रूप से राज्य सरकार या उच्च न्यायालय के आदेश पर एक प्रदेश के अन्तर्गत हुई घटनाओं की जाँच सौंपी जाती है। ,,, चलिए हम आपको विस्तार से बताते हैं,,,,
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आपने CBI के बारे में तो अवश्य सुना होगा। देश में समय-समय पर संदिग्ध मौतों के मामलों की जांच के लिए सीबीआई जांच की मांग की जाती रही है, जैसे अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत के पिता ने अपने पुत्र की मौत की जांच सीबीआई जांच की मांग की। हालांकि देखा जाए तो प्रायः ऐसे मामले प्रभावशाली लोगों से संबंधित होते हैं। जबकि कई लोगों को यह पता ही नहीं होता है कि सीबीआई क्या होती है। और उसके कार्य क्या होते हैं। ,,,,चलिए हम आपको बताते हैं,,,,

आपने सीमा सुरक्षा बल के बारे में तो सुना ही होगा। संक्षेप में इसे बीएसएफ भी कहा जाता है। इस बल के वीर जवान हर दिन सीमा पर पाकिस्तान की घटिया कारतूतों का मुहंतोड़ जवाब देते रहते हैं। और पाकिस्तान की सहायता से नियंत्रण रेखा पार करने वाले आतंकियों को भी मौत की नींद सुलाते रहते हैं, लेकिन फिर भी पाकिस्तान अपनी शैतानी से बाज नहीं आता है।,,,,चलिए बीएसएफ के बारे में आपको विस्तार से बताते हैं,,,,

देश के सबसे शक्तिशाली बल, राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड यानि एनएसजी का नाम तो आपने सुना ही होगा। देश में जब भी आतंकवाद और विमान अपहरण आदि जैसी गंभीर घटनाएं घटित होती हैं तो जवाबी कार्रवाई करने तथा बंधकों को छुड़ाने के अभियानों के लिए एनएसजी को ही तैनात किया जाता है, क्योंकि इन्हें ऐसे कठिन कार्यों को करने की विशेषज्ञता प्राप्त है। इसके अतिरिक्त यह बल वीआईपी सुरक्षा तथा महत्वपूर्ण अवसरों पर सुरक्षा प्रदान करने के लिए कार्य करता है। यह विशेष केंद्रीय पुलिस बल के अंतर्गत आता है।,,,,,,चलिए एनएसजी के बारे में आपको विस्तार से बताते हैं,,,,,

आजकल एलएसी को लेकर हमारे देश और चीन के बीच लद्दाख की गलवान घाटी में तनतनी चल रही है। चीन अपनी चालबाजियों से बाज नहीं आ रहा है। उसकी नापाक मंशा है कि वह किसी तरह से गलवान घाटी पर अधिपत्य कर ले, लेकिन वहां हमारी भारत-तिब्बत सीमा पुलिस और सेना सीना ताने खड़ी हैं। जिससे चीन अपनी योजना में सफल नहीं हो पा रहा है। इससे पहले भारत-तिब्बत सीमा पुलिस चीन को डोकलाम में असफलता का स्वाद चखा चुकी है, फिर भी चीन अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहा है।,,,,,,,,चलिए हम आपको विस्तार से बताते हैं कि आईटीबीपी क्या है,,,,,,
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हमारे देश में चुनाव से पहले चुनाव के टिकट के लिए दल-बदल का खेल तो आम बात हो चुकी है, लेकिन चुनाव जीतने के बाद विधायक या सांसद भी अपना दल छोड़ने में जरा भी पीछे नहीं रहते हैं। हाल ही में राजस्थान में सत्ता के संघर्ष में कांग्रेसी विधायक दो फाड़ हो गए। सत्ता प्राप्त करने की इस लड़ाई में सचिन पायलट के गुट ने दल-बदल करने की स्थिति पैदा कर दी। हालांकि राहुल गांधी और प्रियंका गांधी के प्रयास से राजस्थान सरकार तो गिरने तो बच गयी, लेकिन इस घटना ने एक बार फिर दल बदल विरोधी कानून की प्रासंगिकता को लेकर प्रश्न खड़ा कर दिया । ,,,, चलिए हम आपको विस्तार से बताते हैं,,,,
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उत्तर प्रदेश में सीएए कानून के विरोध में हुए प्रदर्शन के समय से ही 'पुलिस मित्र' चर्चा में हैं। अब कानपुर पुलिस हत्याकांड के बाद एक फिर अपने कार्यों को लेकर चर्चा में बने हुए हैं। ऐसा कहा जा रहा है कि थाने के पुलिसवालों के साथ ही पुलिस मित्रों ने भी दुर्दांत अपराधी विकास दुबे के लिए जासूसी करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।,,,, चलिए हम आपको विस्तार से बताते हैं,,,,
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हाल ही में उत्तर प्रदेश के कानपुर पुलिस हत्याकांड ने एक बार फिर अपराधी नेताओं और पुलिसवालों के बीच अपवित्र रिश्ते की पोल खोलकर रख दी है। देश में ऐसी कोई भी राजनीतिक पार्टियां नहीं है, जो पूरी तरह से अपराध की छवि से मुक्त हो। यानि उनके किसी न किसी नेता के विरुद्ध अपराध के प्रकरण पंजीकृत हैं। जो हमारे देश के लोकतंत्र के लिए बहुत चिंता का विषय है। ,,, चलिए हम आपको विस्तार से बताते हैं,,,,
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आप लोगों के मन में कभी न कभी प्रश्न अवश्य उठता होगा कि जिन लोगों को गंभीर अपराध के प्रकरणों में आजीवन कारावास का दंड मिलता है, उन्हें कितने समय तक कारावास में रहना पड़ता है। हालांकि कुछ लोगों के बीच आजीवन कारावास की समय सीमा को लेकर धारणा बनी हुई है कि ये कारावास 14 वर्ष का होता है, जबकि कुछ लोगों का कहना है कि 20 वर्ष का कारावास होता है। ,,,, चलिए हम आपको विस्तार से बताते हैं,,,,
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यदि आप गांव में रहते हैं तो ग्राम पंचायत सचिव के बारे में आप अवश्य जानते होंगे। हो सकता है गांव की विकास योजनाओं की जानकारी और योजनाओं का लाभ प्राप्त करने को लेकर पंचायत सचिव से मिले भी होंगे। विकास की योजनाओं के बारे में बात भी की होगी। लेकिन क्या आपको बता है कि पंचायत सचिव क्या होता है और उसके कार्य क्या होते हैं। यदि आपको नहीं पता है तो इसमें चिंता करने की कोई बात नहीं है। ,,,चलिेए हम आपको विस्तार से बताते हैं,,,,
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हमारे देश का शासन चलाने के लिये एक लोकतांत्रिक सरकार का गठन किया जाता है। देश के नागरिक के मतदाधिकार द्वारा देश को चलाने के लिये सरकार का चुनाव किया जाता है। लोकसभा चुनाव के बाद बहुमत के आधार पर सरकार का गठन होता है। इस सरकार का प्रमुख प्रधान प्रधानमंत्री होता है। जबकि राष्ट्रपति केवल नाममात्र का राष्ट्र प्रमुख होता है। लेकिन वस्तुतः देश की शासन व्यवस्था की बागडोर प्रधानमंत्री के हाथों में ही होती है। चलिए हम आपको विस्तार से बताते हैं,,,,,
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आप लोगों में से किसी न किसी ने विवाद या समस्या को लेकर पुलिस चौकी या थाने का चक्कर अवश्य लगाया होगा । वहां पर सब इंस्पेक्टर यानि उप निरीक्षक से मिलकर अपनी समस्या को बताया होगा और उसे सुलझाने के लिए प्रार्थना पत्र भी दिया होगा। अब आपकी समस्या का निदान हुआ या नहीं ये कहना मुश्किल है। लेकिन अभी भी बहुत से लोगों को यह पता नहीं है कि जिस उप निरीक्षक पास वो सहयोग मांगने गए थे वह कौन है और उसके कार्य क्या होते हैं। ,,,चलिए हम आपको विस्तार से बताते हैं,,,,
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आप लोग किसी घटना या विवाद को लेकर कभी न कभी पुलिस स्टेशन या थाने में अवश्य गए होंगे और SHO यानि पुलिस स्टेशन के प्रभारी अधिकारी से सहायता मांगी होगी। लेकिन अभी भी बहुत से लोग यह नहीं जानते हैं कि जिस SHO के पास वह न्याय की आशा में गए हैं वह कौन है और जनता के प्रति उसके कर्तव्य क्या हैं। चलिए हम आपको विस्तार से बताते हैं कि SHO कौन होता है और उसके कार्य क्या होते हैं।

बीडीओ यानि खंड विकास अधिकारी का नाम आप लोगों ने तो सुना ही होगा। आप लोगों में से कई लोगों ने तो सरकार की विकास योजनाओं का लाभ न मिलने या प्रधान की मनमानी के विरुद्ध खंड विकास अधिकारी से शिकायत भी की होगी। लेकिन अधिकतर लोगों को यह नहीं पता है कि खंड विकास अधिकारी किसे कहते हैं और उसके कार्य क्या होते हैं,,, यदि आप नहीं जानते हैं तो इसमें चिंता करने की कोई बात नहीं है,,,, आज हम आपको बताते हैं,,,,
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पटवारी या लेखपाल से आप लोग तो बहुत अच्छी तरह से परिचित होंगे। क्योंकि आप लोगों को कभी न कभी भूमि से संबंधित मामले को लेकर पटवारी या लेखपाल का चक्कर अवश्य लगाना पड़ा होगा। सीएससी सेंटर खुलने से पहले छात्रों को भी आय या जाति प्रमाण पत्र प्राप्त करने के लिए पटवारी का चक्कर लगाना पड़ता था। लेकिन ऑनलाइन सुविधा हो जाने से उन्हें थोड़ी राहत मिल गयी है।,,,, लेकिन इतना होने पर भी अभी भी बहुत से लोगों को नहीं पता है कि पटवारी या लेखपाल कौन होता है और उसके कार्य क्या होते हैं,,,, चलिए हम आपको विस्तार से बताते हैं,,,,
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हमारे देश का लोक प्रशासन जिला, तहसील, ब्लाक और ग्राम पंचायत के माध्यम से संचालित होता है। यहां पर नियुक्त अधिकारी और कर्मचारी देश की जनता को उनकी मांग के अनुसार सेवाएं प्रदान करते हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं कि तहसील के प्रशासन का प्रमुख कौन होता है। यदि नहीं तो अब हम आपको बताते हैं।
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आप लोगों ने नायब तहसीलदार के पद के बारे में सुना होगा। और बहुत से लोगों ने तो भूमि से संबंधित कार्य या भूमि के विवाद को लेकर नायब तहसीलदार के कार्यालय का चक्कर भी लगाया होगा, लेकिन फिर भी काफी लोगों को यह नहीं पता है कि नायब तहसीलदार कौन होता है और जनता के प्रति उसके क्या कर्तव्य होते हैं।,,,,चलिए हम आपको बताते हैं,,,,
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देश में कुछ सिरफिरे और अराजक लोग पुलिस पर हमले, डॉक्टरों के साथ बदसलूकी, नर्सों के साथ अश्लील हरकत करने और मेडिकल स्टाफ पर हमले करने से बाज नहीं आ रहे हैं। उनकी इस गुंडागर्दी से नाराज उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ की सरकार ने इनके खिलाफ राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत कार्रवाई करने का निर्णय लिया है।,,, आइए हम आपको विस्तार से बताते हैं,,,,

आखिरकार केंद्र सरकार ने जम्मू और कश्मीर से अनुच्छेद 370 व 35ए हटने के आठ महीने बाद एक महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर में डोमिसाइल यानि अधिवास को लागू कर दिया है। गृहमंत्रालय ने एक अप्रैल को जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन (राज्य कानूनों का अनुकूलन) आदेश 2020 जारी कर दिया। ,,,, आइए हम आपको विस्तार से बताते हैं,,,,

वो कहावत तो अवश्य सुनी ही होगी, देखो सौ चूहे खाकर बिल्ली हज करने को चली। आज हमारे देश के नेताओं का कुछ ऐसा ही हाल है। जिन सांसदों ने पूर्व मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई के राज्यसभा में मनोनयन के विरोध में हंगामा किया। शेम-शेम के नारे लगाए और सदन से वॉकआउट किया। उन्हीं 542 सांसदों में से लगभग 233 यानि 43 फीसदी सांसदों के खिलाफ न्यायालयों में आपराधिक मुकदमे लंबित हैं। ,,,, चलिए हम आपको बताते हैं विरोध की पूरी सच्चाई,,,

योगी आदित्यनाथ की सरकार ने इसके लिए 'उत्तर प्रदेश लोक तथा निजी सम्पत्ति क्षति वसूली अध्यादेश 2020' पास कर दिया है। इसके तहत आंदोलनों और प्रदर्शनों के दौरान सार्वजनिक या निजी संपत्ति को नुकसान पहुंचाने पर दोषियों से वसूली भी होगी और उनके पोस्टर भी लगाए जाएंगे। इसके लिए उत्तर प्रदेश की योगी सरकार संपत्ति क्षय दावा अधिकरणों का गठन करेगी।

हमारी संसद और विधानसभाओं में आपराधिक तत्वों का चुना जाना, देश का दुर्भाग्य है। राजनीति में आपराधिक तत्वों का वर्चस्व बढ़ना कैंसर की तरह है, जिसका इलाज होना जरूरी है। इस कैंसररूपी महामारी से मुक्ति मिलने पर ही हमारा लोकतंत्र पवित्र एवं सशक्त बन सकेगा। अपराधी एवं दागी नेताओं को लेकर सर्वोच्च न्यायालय का ताजा फैसला भारतीय लोकतंत्र के रिसते हुए जख्मों पर मरहम लगाने जैसा है।

गौतमबुद्ध नगर जिले में जांच में खुलासा हुआ है कि थानों में 2 होमगार्डों की ड्यूटी लगाकर 10 होम गार्डों का वेतन निकाल लिया जाता था। इसके बाद विभिन्न थानाध्यक्षों के फर्जी हस्ताक्षर व मुहर के सहारे बैंक से दैनिक भत्ता निकाल लिया जाता था।

भारतीय संविधान में या फिर संसद के द्वारा पारित किसी भी अन्य विधि में लाभ के पद को कहीं भी परिभाषित नहीं किया गया है। लेकिन फिर भी लाभ के पद के बारे में संविधान में उल्लेख अवश्य किया गया है।

नरेंद्र मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में भ्रष्ट अधिकारियों के खिलाफ हो रही कार्रवाई से जनता में एक बार फिर उम्मीद जगी है। और ऐसा लग रहा है कि शायद भ्रष्ट व्यवस्था में कुछ न कुछ सुधार अवश्य होगा।

क्या मंत्रियों और नेताओं की गाड़ी से लाल बत्ती व हूटर हटवाने से वीआईपी कल्चर खत्म हो गया है? उत्तर है नहीं,,,, बत्ती चली गयी, लेकिन बल नहीं गया। हमारे देश में नेता चुनाव जीतते ही जनता के सेवक से वीआईआईपी हो जाते हैं। राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, मंत्री, मुख्यमंत्री, सांसद, विधायक और पार्षद आदि का पद ग्रहण करते ही पुलिस और कमांडो की सुरक्षा में गाड़ियों के कारवां के बीच चलने लगते हैं।

दिल्ली में हर वर्ष सर्दी शुरु होते ही वायु प्रदूषण को लेकर हाहाकार मचा जाता है। इस बार भी हेल्थ इमरजेंसी जैसे हालात हो गए हैं। वहीं इस समस्या का ठोस निदान करने की बजाय केंद्र और दिल्ली सरकार चुनावी मोड में हैं। एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप का दौर शुरु कर दिया है। और वायु प्रदूषण का सारा ठीकरा पराली जलाने वाले पंजाब और हरियाणा के किसानों के सिर पर फोड़ दिया है।

पुलिस बल राज्य द्वारा अधिकार प्राप्त व्यक्तियों का एक निकाय है, जो राज्य के द्वारा बनाए गए कानूनों को लागू करने, संपत्ति की रक्षा और नागरिक अव्यवस्था को सीमित रखने का कार्य करता है। पुलिस को प्रदान की गई शक्तियों में बल का वैध उपयोग करना भी शामिल है।

अधिवक्ता वह होता है जिसको कोर्ट में किसी अन्य व्यक्ति की तरफ से प्रतिपादन करने या दलीलों को रखने का अधिकार प्राप्त हो।

हमारे देश में विधायक चुनने की परपंरा इसलिए शुरू की गई थी कि जनता द्वारा निर्वाचित विधायक अपने-अपने क्षेत्र के विकास एवं समस्याओं को विशेष प्राथमिकता देंगे और वहां की जनता की सेवा करेंगे, लेकिन जमीनी सच्चाई कुछ ही है। आजकल विधायक बनना तो स्टेटस सिंबल बन गया है। विधायकों में अब जनसेवा की भावना तो दिखाई ही नहीं देती है। विधानसभा सदस्य बनने के बाद विधायक जनता की बजाय अपने परिवार की सेवा में जुट जाते हैं और रातों-रात खाकपति से करोड़पति बन जाते हैं। और कारों के काफिले और कमांडो की सुरक्षा में घूमने लगते हैं। वहीं उनको चुनने वाली जनता या कहें उनका मालिक उन्हें देखकर हैरान परेशान ताकता रह जाता है कि आखिर यह कैसा लोकतंत्र है। जिसमें रातों-रात नौकर मालिक हो जाता है और मालिक नौकर हो जाता है।

हमारे देश की जनता 'लोकसभा चुनाव' के जरिए अपना सांसद चुनती है। इन सांसदों की सहमति से ही देश के लिए नए कानून बनाए जाते हैं और पुराने कानूनों में न्यायोचित संशोधन किया जाता है। इसके साथ ही ये सांसद देश के विकास के लिए योजनाएं एवं देश के नागरिकों की तरक्की व रोजगार के लिए प्रबंधन भी करते हैं। इसीलिए कहा जाता है कि संसद में देश का भविष्य तय किया जाता है। यानी सांसद देश का भाग्य विधाता होता है। लेकिन सच में क्या ऐसा है ? शायद नहीं ! लाखों रुपए वेतन-भत्ते और पांच करोड़ रुपए सांसद निधि पाने वाले हमारे भाग्य विधाता सांसद देश के नागरिकों का भाग्य बदलने की बजाय अपना और अपने परिवार का भाग्य बदलने में जुटे हुए हैं। वह रातों-रात खाकपति से करोड़पति बन रहे हैं। वहीं उनको चुनने वाली जनता उन्हें देखकर हैरान और परेशान है कि आखिर इनकी मनमानी कब रुकेगी?

हमारे देश में यदि कोई नेता एक दिन के लिए भी विधानसभा सदस्य बन जाता है तो वह आजीवन पेंशन और भत्तों का अधिकारी हो जाता है,,,, और उसके या उसके परिवार के लिए जीवन भर के लिए पेंशन और भत्ते की व्यवस्था पक्की हो जाती है। ऐसा क्यों...

जिला कलेक्टर या जिला मजिस्ट्रेट जिले का मुख्य कार्यकारी, प्रशासनिक और राजस्व अधिकारी होने के साथ ही कल्याण और नियोजित विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। और जिले में कार्य कर रहीं विभिन्न सरकारी एजेंसियों के मध्य समन्वय स्थापित करता है।

हमारे देश में यदि कोई भी नेता एक दिन के लिए भी सांसद बन जाता है तो उसे संविधान के अनुच्छेद 106 के तहत भारत सरकार की ओर से पेंशन मिलनी शुरु हो जाती है। इतना ही नहीं, वह जितनी बार सांसद बनता है उतनी बार उसकी पेंशन और पेंशन की संख्या में बढ़ोतरी होती जाती है। आखिर क्यों !

उत्तर प्रदेश की जनता की शिकायत के समाधान के लिए स्थापित जनसुनवाई पोर्टल को अधिकारियों ने मजाक बनाकर रख दिया है। अधिकारी समस्या का निस्तारण करने की बजाय बिना जांच और कार्यवाही के झूठी रिपोर्ट लगाकर इस व्यवस्था का मजाक उड़ा रहे हैं। और सरकार के सामने अपनी पीठ थपथपा रहे हैं।

हर व्यक्ति को आत्मरक्षा या निजी रक्षा का अधिकार 

भारतीय दण्ड संहिता की धारा 96 से लेकर 106 तक की धारा में सभी व्यक्तियों को आत्मरक्षा का अधिकार दिया गया है । व्यक्ति स्वयं की रक्षा किसी भी हमले या अंकुश या स्वयं की संपत्ति की चोरी, डकैती, शरारत व अपराधिक अतिचार के खिलाफ कर सकता है।

आत्मरक्षा अधिकार के सिद्धांत

1-आत्मरक्षा का अधिकार रक्षा या आत्मसुरक्षा का अधिकार है । इसका मतलब प्रतिरोध या सजा नहीं है।

2-आत्मरक्षा के दौरान चोट जितनी जरूरी हों उससे ज्यादा नहीं होनी चाहिए ।

3-ये अधिकार सिर्फ तभी तक ही उपलब्ध हैं जब तक कि शरीर अथवा  संपत्ति को खतरे की उचित आशंका हो या जब कि खतरा सामने हो या होने वाला हो।

आत्मरक्षा को साबित करने की जिम्मेदारी अभियुक्त की होती है

1-आपराधिक मुकदमों में अभियुक्त को आत्मरक्षा के अधिकार के लिए निवेदन करना चाहिए।

2-ये जिम्मेदारी अभियुक्त की होती है कि वह तथ्यों व परिस्थितियों के द्वारा ये साबित करे कि उसका काम आत्मरक्षा में किया गया है।

3-आत्मरक्षा के अधिकार का प्रश्न केवल अभियोग द्वारा तथ्यों व परिस्थितियों के साबित करने के बाद ही उठाया जा सकता है ।

4-यदि अभियुक्त आत्मरक्षा के अधिकार की गुहार नहीं कर पाता है, तब भी न्यायालय को ये अधिकार है कि अगर उसे उचित सबूत मिले तो वह इस बात पर गौर करे। यदि उपलब्ध साक्ष्यों से ये न्याय संगत लगे तब ये निवेदन सर्वप्रथम अपील में भी उठाया जा सकता है ।

5-अभियुक्त पर घाव के निशान आत्मरक्षा के दावे को साबित करने के लिए मददगार साबित हो सकते हैं ।

आत्मरक्षा का अधिकार कब प्राप्त नहीं

1- यदि लोक सेवक या सरकारी कर्मचारी कोई कार्य करता है, जिससे मृत्यु या नुकसान की आशंका युक्ति युक्त रुप से नहीं होती है । और वह सद्भावनापूर्वक अपने पद पर काम करता है ।

2-कोई व्यक्ति जो लोक सेवक के निर्देश पर कोई कार्य करे या करने की कोशिश करे। उदाहरण- कोर्ट के लाठीचार्ज के आदेश, पुलिस की कार्रवाई।

3-यदि कोई कार्य उचित देखभाल व सावधानी से किया जाए तब उसे सद्भावनापूर्वक किया गया माना जायेगा।

4-ऐसे समय में जब सुरक्षा के लिए उचित प्राधिकारियों की सहायता प्राप्त करने के लिए समय हो।

5-स्वयं या संपत्ति की रक्षा के लिए उतने ही बल के प्रयोग का अधिकार है, जितना स्वयं की रक्षा के लिए जरूरी हो।

6-किसी विकृतचित्त व्यक्ति(अपरिपक्व समझ के शिशु, पागल व्यक्ति , शराबी) के खिलाफ आत्मरक्षा का अधिकार है।

7-किसी आक्रमण करने वाले को जान से मारा जा सकता है, अगर उस हमलावर से मौत, बलात्कार, अप्राकृतिक कार्य, अपहरण आदि की आशंका हो।

8-सुप्रीम कोर्ट ने आत्मरक्षा के अधिकार से जुडे मामले में अपने निर्णय में कहा था कि कानून का पालन करने वाले लोगों को कायर बनकर रहने की जरूरत नहीं है, खासकर तब, जबकि आपके ऊपर गैरकानूनी तरीके से हमला किया जाए।

संपत्ति की रक्षा का अधिकार

1- संपत्ति के वास्तविक मालिक को अपना कब्जा बनाए रखने का अधिकार है ।

2-संपत्ति पर जबरदस्ती कब्जा जमाए रखने वाला व्यक्ति कब्जे को बनाए रखने की प्रार्थना नहीं कर सकता है ।

3-कोई बाहरी व्यक्ति अचानक खाली पड़ी जमीन पर कब्जा करके वास्तविक मालिक को बेदखल नहीं कर सकता है ।

4-जमीन के वास्तविक मालिक को अधिकार है कि वो कानूनी तरीके से बाहरी व्यक्ति को अपनी जमीन में ना घुसने दे।

5-बाहरी व्यक्ति को शारीरिक हमले से आत्मरक्षा का अधिकार तभी होगा जब वो संपत्ति का यह अधिकार लंबे समय से इस्तेमाल कर रहा हो।

6-अगर वास्तविक मालिक बलपूर्वक अचानक जमीन पर कब्जा करने वाले बाहरी व्यक्ति से बलपूर्वक अपनी जमीन को प्राप्त करेगा , तो वह किसी अपराध का दोषी नहीं होगा ।

7-यदि कोई बाहरी व्यक्ति असली मालिक को जानते हुए भी गलती से किसी जमीन के टुकड़े को लंबे समय तक इस्तेमाल करता है तो असली मालिक कानून को अपने हाथ में नहीं ले सकता है। उसे कानूनी उपचारों की मदद लेनी होगी।

8-आईपीसी की धारा 103 के मुताबिक लूट, रात्रि में घर में सेंध,आगजनी,चोरी आदि की स्थिति में अगर जान का खतरा हो तो आक्रमणकारी की हत्या करना न्याय संगत होगा।

इसलिए आपके ऊपर जब भी गैरकानूनी तरीके से हमला किया जाए, आप निडर होकर अपनी आत्मरक्षा करें।

संपत्ति की निजी प्रतिरक्षा का अधिकार

1-संपत्ति की निजी प्रतिरक्षा का अधिकार तब शुरु होता है , जब संपत्ति के संकट की युक्तियुक्त आशंका शुरु होती है ।

2-संपत्ति का निजी प्रतिरक्षा का अधिकार चोरी के खिलाफ अपराधी के संपत्ति सहित पहुंच से बाहर हो जाने तक होती है अथवा लोक प्राधिकारियों की सहायता प्राप्त कर लेने तक बनी रहती है ।

3-संपत्ति का निजी प्रतिरक्षा अधिकार लूट के विरुद्ध तब तक बना रहता है , जब तक कि अपराधी किसी व्यक्ति की मृत्यु या उसे नुकसान पहुंचाने तक विरोध करता है  या फिर कोशिश करता रहता है । अथवा जब तक तुरंत मौत का या निजी विरोध का भय बना रहता है ।

4-संपत्ति की प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार अत्याचार के खिलाफ तब तक बना रहता है । जब तक कि अपराधी अत्याचार करता रहता है ।

5-संपत्ति का निजी प्रतिरक्षा का अधिकार रात में घर में सेंध लगाने के खिलाफ तब तक बना रहता है । जब तक  सेंध से शुरु हुआ गृह अत्याचार जारी रहता है

तहसीलदार जिले की प्रशासकीय ढांचे का महत्वपूर्ण हिस्सा होते हैं। यह तहसील (उपखंड) के मुख्य राजस्व प्रभारी के तौर पर कार्य करते हैं। तहसीलदार राज्य सरकार के द्वितीय श्रेणी के राजपत्रित अधिकारी होते हैं।

इंग्लैंड की प्रिवी काउंसिल ने 1637 में अपने फैसले में कहा कि वकीलों को समाज के अनुसार कपड़े पहनने चाहिए। उसी समय से वकीलों ने पूरी लंबाई के काले रंग के गाउन पहनने की शुरुआत की।

भारत में डॉक्टरों के सफेद कोट की शुरुआत बीसवीं सदी में अंग्रेजों के समय में हुई। जो देश की आजादी के बाद आज भी चला आ रहा है।

भारतीय प्रशासनिक व्यवस्था के अंतर्गत जिले की तहसील (उपखंड) में तहसीलदार के समान ही राजस्व और मजिस्ट्रेट के कर्तव्यों का निर्वहन करने वाला नायब-तहसीलदार होता है। नायब तहसीलदार राजस्व के मामलों में तहसीलदार की ही तरह सहायक कलेक्टर, ग्रेड II की शक्तियों का उपयोग करता है। आइए जानते हैं कि नायब तहसीलदार के कार्य क्या हैं। 

नायब तहसीलदार के कार्य:- 

  • भूमि राजस्व और सरकार को देय अन्य बकाया राशि का संग्रह करना, 
  • अधीनस्थ राजस्व कर्मचारियों के संपर्क में रहना,
  • विकास योजनाओं को लागू करने में सहायता करना,
  • सड़कों, नालियों, फुटपाथ, तटबंधों के निर्माण व निष्पादन में सहायता करना,
  • मिट्टी संरक्षण और सुधार में सहायता करना,
  • मौसमी स्थितियों और फसलों की स्थिति का निरीक्षण करने के लिए क्षेत्र का दौरा करना,
  • किसानों की कठिनाइयों को सुनना और ऋण वितरित करने के लिए क्षेत्रों का दौरा करना,
  • भूमि से सम्बंधित विवादों का निर्णय हेतु अपने उच्च अधिकारी को अवगत कराना,
  • खाता पुस्तकों में प्रविष्टियों में सुधार करना,
  • प्राकृतिक आपदाओं से पीड़ित लोगों को राहत प्रदान करना,
  • सरकारी छूट या निलंबन-सियोनोफलैंड राजस्व की सिफारिश करना,
  • किरायेदारी के विवादों को सुलझाने के लिए अदालतों में बैठना,
  • विधानसभा के चुनाव के लिए, तहसील में आने वाले निर्वाचन क्षेत्र / निर्वाचन क्षेत्रों के लिए सहायक रिटर्निंग अधिकारी के रूप में कार्य करना।

भारतीय लोक प्रशासन में तहसीलदार जिले की प्रशासकीय ढांचे का महत्वपूर्ण हिस्सा होते हैं। यह तहसील (उपखंड) के मुख्य राजस्व प्रभारी के तौर पर कार्य करते हैं। तहसीदार राज्य सरकार के द्वितीय श्रेणी के राजपत्रित अधिकारी होते हैं। आइए जानते हैं कि तहसीलदार के कार्य क्या हैं:- 

  • तहसीलदार का कार्य राजपत्रित अधिकारी के रूप में प्रमाण पत्र जारी करना,
  • वृद्धावस्था/विकलांग/विधवा पेंशन, जाति प्रमाण-पत्र/मूल निवास प्रमाण-पत्र/हैसियत प्रमाण-पत्र प्रदान करना,
  • भूमि राजस्व, नहर राजस्व, उपकर एवं अन्य सरकारी देय राशि को एकत्रित करना,
  • जमाबंदी का राजस्व एवं ग्राम सभा के आसामियों की जमाबंदी की तैयारी पर पर नजर रखना,
  • भू राजस्व को फिर से लगाना, या उसकी फिर से संरचना करना,
  • ग्राम सभा या राज्य सरकार से संबंधित मुकदमे या कार्यवाहियों की देखरेख करना,
  • तहसीलदार के प्रभार में रखे गए सभी सरकारी धन और संपत्ति की सुरक्षा की जिम्मेदारी का निर्वहन करना,
  • ग्राम सभा या राज्य सरकार से संबंधित मुकदमे या कार्यवाहियों की देखरेख करना,
  • भूमि रिकॉर्ड के नियमों के अनुसार भूमि रिकॉर्ड के काम की निगरानी एवं  परीक्षण करना,
  • ग्रामीण क्षेत्रों में आवासीय/औद्योगिक प्रयोजन के लिए भूमि का रूपान्‍तरण करना,
  • राजस्व रिकॉर्ड और फसल आंकड़ों का निर्माण करना,
  • मौसमी स्थितियों और फसलों की स्थिति का निरीक्षण करने के लिए किसानों की कठिनाइयों को सुनना,
  • प्राकृतिक आपदाओं का सामना करने वाले लोगों को राहत प्रदान करना,
  • तकावी ऋण वितरित करने के लिए बड़े पैमाने पर क्षेत्रों का दौरा करना,
  • बैंको आदि से ऋण प्राप्‍त करने हेतु अदेय प्रमाण-पत्र जारी करना
  • रास्‍तों के वादों के निस्‍तारण का कार्य करना,
  • खेतों से हरे वृक्ष उन्‍हे काटने की अनुमति देना,
  • खेत के सीमांकन/सर्वेक्षण के लिए संबंधित पटवारी को आदेश देना,
  • कानूनगो एवं लेखपाल द्वारा किए गए कार्यों का निरीक्षण करना,
  • किरायेदारी के विवादों, किरायेदारों के किराए के निकास के बकाया, खाता पुस्तकों में प्रविष्टियों इत्यादि का निपटारा करना,
  • तहसील में होने वाले सभी प्रकार के सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक गतिविधियों को ठीक से क्रियान्वित करने के लिए जिलाधिकारी एवं अनुविभागीय अधिकारी के संपर्क में रहना,
  • तहसीलदार जिलाधिकारी एवं उप जिलाधिकारी (एसडीएम) के दिशा निर्देशन में राजस्व, सामान्य प्रशासन, कृषि विभाग, कानून व्यवस्था एवं अपराध से जुड़े मामलों पर एक कार्यकारी अधिकारी के तौर पर कार्य करना।

भारतीय लोक प्रशासन में जिला प्रशासन की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। जिसके शीर्ष पर कलेक्टर होता है, जबकि उसके अधीन तहसील (उपखंड) में डिप्टी कलेक्टर या उप जिला मजिस्ट्रेट होता है। राजस्व कानून के तहत, उसमें कलेक्टर की शक्तियों ही निहित होती है। आइए जानते हैं कि डिप्टी कलेक्टर या उप जिला मजिस्ट्रेट के क्या कार्य होते हैं। 

डिप्टी कलेक्टर या उप जिला मजिस्ट्रेट के कार्य:- 

  • राजस्व, मजिस्ट्रेट, कार्यकारी और विकास मामलों से संबंधित शक्तियों और जिम्मेदारियों को निभाना,
  • भू राजस्व संहिता के तहत अपीलें/निगरानी का कार्य करना,
  • पंचायत राज अधिनियम के अंतर्गत आने वाले सभी मामले का कार्य करना,
  • जिले से संबंधित समस्त राजस्व/नजूल के मामले का कार्य करना,
  • राजस्व, कृषि, पशुपालन और सार्वजनिक स्वास्थ्य विभागों में सभी अधिकारियों के काम का समन्वय करना, 
  • पुलिस के साथ संपर्क और समन्वय; विभिन्न समुदायों और वर्गों के बीच संबंधों पर नजर रखना,
  • पुलिस स्टेशन से अपराध से निपटने वाले किसी भी रिकॉर्ड और रजिस्टरों को मंगवाना और मामलों की व्याख्या करने के लिए पुलिस स्टेशन के स्टेशन ऑफिसर को फोन करना,
  • विधान सभा के चुनावों के लिए, अपने अधिकार क्षेत्र में निर्वाचन क्षेत्र / निर्वाचन क्षेत्रों के लिए रिटर्निंग अधिकारी नियुक्त होना,
  • लोकसभा निर्वाचन क्षेत्रों के चुनावों के लिए, सहायक रिटर्निंग अधिकारी नियुक्त होना,
  • सड़क दुर्घटना निधि सहायता स्वीकृत करने का कार्य करना,
  • वैध उत्तराधिकार संरक्षण प्रमाण पत्र जारी करना,
  • नगर भूमि सीमा के सक्षम प्राधिकारी के रुप में कार्य करना,
  • भू अभिलेख, डायवर्सन, भू प्रबंधन, नगर भूमि सीमा,शिकायत एवं सतर्कता, जनशिकायत निवारण, समाधान एक दिन, समाधान आनलाईन, लोकायुक्त एवं आर्थिक अपराध एवं अनुसंधान शाखाओं की नस्तियॉ संबंधित कार्य करना,
  • उद्यानिकी, जिला खाद्य, सहकारिता, जिला अल्प बचत/सूचना एवं प्राद्योगिकी का कार्य करना,
  • राज्य सुरक्षा अधिनियम के तहत मजिस्ट्रेट की शक्तियों का निर्वहन करना,
  • हिन्दू विवाह अधिनियम के तहत विवाह पंजीयन अधिकारी अधिनियम में प्रस्तुत प्रकरण का निवारण करना,
  • प्रेस एवं रजिस्ट्रेशन अधिनियम के तहत पंजीयन अधिकारी के रुप में कार्य करना,
  • जुलूस, रैली, प्रदर्शन लाउडस्पीकर की अनुमति का कार्य करना,
  • शहर यातायात का समस्त कार्य करना, 
  • सभी तरह के लायसेंसों का नवीनीकरण करना,
  • सैनिक कल्याण और खनिज शाखा से संबंधित कार्य करना,
  • दस हजार तक की वित्तीय सहायता देने का अधिकार  
  • वी आई पी आगमन पर व्यवस्था और वाहन अधिग्रहण संबंधी व्यवस्था करना,
  • सूखा राहत, जिला अल्प बचत ,जनसुनवाई शाखा, सूचना एवं प्रौद्योगिकी, महिला एवं बाल विकास, स्वास्थ्य शिक्षा, सर्वशिक्षा अभियान, आदिम जाति कल्याण, खेल एवं युवक कल्याण, शहरी विकास अभिकरण, उद्योग/ग्रामोद्योग और रोजगार विभाग का कार्य करना,
  • प्राकृतिक/दैवीय आपदा (बाढ़, अग्निकांड, भूकंप, भूस्खलन, शीतलहरों, बादल फटने, ओलावृष्टि, अतिवृष्टि, विद्युत प्रभाव, लू-प्रकोप, हिम स्खलन, कीट आकृमण) आदि से प्रभावित व्यक्तियों को सहायता उपलब्ध करवाना,
  • भू अर्जन अधिकारी, भाड़ा नियंत्रण अधिकारी और लोक परिसर बेदखली अधिनियम के तहत सक्षम प्राधिकारी के रुप में कार्य करना,
  • क्षेत्र का भाड़ा नियंत्रण, रजिस्ट्रार पब्लिक ट्रस्ट, भूअर्जन और लोक परिसर बेदखली अधिनियम के तहत सक्षम प्राधिकारी के रुप में कार्य करना।
  • आपराधिक प्रक्रिया संहिता 1973 और कई अन्य नाबालिग कृत्यों के अंतर्गत विभिन्न मजिस्ट्रेट का कार्य करना।

 

भारतीय लोक प्रशासन में जिला कलेक्टर या जिला मजिस्ट्रेट की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। वह जिले का मुख्य कार्यकारी, प्रशासनिक और राजस्व अधिकारी होने के साथ ही कल्याण और नियोजित विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसके अलावा जिले में कार्य कर रहीं विभिन्न सरकारी एजेंसियों के मध्य समन्वय स्थापित करने के चलते वह 'जिला प्रबंधक' की भी भूमिका निभाता है। आइए जानते हैं कि जिला कलेक्टर या जिला मजिस्ट्रेट की भूमिका क्या है। -

जिला कलेक्टर के रुप में भूमिका:-

  • जिला कलेक्टर की भूमिका जिले का प्रशासन चलाना,
  • जिले में समस्त सरकारी गतिविधियों के समन्वयक के रुप में काम करना,
  • सरकार के प्रतिनिधि के रुप में जन संपर्क की दिशा में कार्य करना,
  • जिले के राजस्व प्रशासक एवं भूमि रिकॉर्ड प्रशासन के रुप में काम करना,
  • जिला आपदा प्रबंधक समिति के मुखिया के रुप में काम करना,
  • जिला कोषालय के पर्यवेक्षक के रुप में कार्य करना,
  • जिले की भूमि का मूल्यांकन करना,
  • जिले की भूमि का अधिग्रहण करना,
  • जिले के भूमि राजस्व का संग्रहण करना,
  • जिले के भूमि रिकार्डों का रख-रखाव करना,
  • जिले के भूमि सुधार व जोतों का एकीकरण करना,
  • जिले के आयकर, उत्पाद शुल्क, सिंचाई के बकाए को वसूलना,
  • जिले के कृषि ऋण का वितरण करना,
  • जिले में बाढ़, सूखा और महामारी जैसी प्राकृतिक आपदाओं के समय आपदा प्रबंधन करना,
  • जिले में बाह्य आक्रमण और दंगों के समय संकट प्रबंधन करना,
  • जिला बैंकर समन्वय समिति का अध्यक्षता करना,
  • जिला योजना केंद्र की अध्यक्षता करना,

जिला मजिस्ट्रेट के रुप में भूमिका:-

  • जिले की कानून व्यवस्था की स्थापना करना,
  • जिले में पुलिस और जेलों का निरीक्षण करना,
  • जिले के अधीनस्थ कार्यकारी मजिस्ट्रेटों का निरीक्षण करना
  • अपराध प्रक्रिया संहिता के निवारक खंड से सम्बंधित मुकदमों की सुनवाई करना,
  • मृत्यु दंड के कार्यान्वयन को प्रमाणित करना,
  • सरकार को वार्षिक अपराध प्रतिवेदन प्रस्तुत करना,
  • जिले के सभी मुद्दों से मंडल आयुक्त को अवगत कराना,
  • मंडल आयुक्त की अनुपस्थिति में जिला विकास प्राधिकरण के पदेन अध्यक्ष के रूप में कार्य करना,

जिला  मुख्य प्रोटोकोल अधिकारी के रुप में भूमिका:-

  • जिले में प्रोटोकाल कार्यों के संचालन हेतु भूमिका निभाना,
  • जिले की जनगणना के कार्य को संपन्न कराना,
  • जिले में रोजमर्रा की जरुरत की वस्तुओं की आपूर्ति और वितरण पर निगरानी रखना,
  • जिले की स्थानीय जनता की समस्याओं को सुनना और उनके निवारण हेतु आवश्यक कदम उठाना,
  • जिले के युवा सरकारी अधिकारियों की गतिविधियों का निरीक्षण करना और उनके प्रशिक्षण की व्यवस्था करना,

जिला मुख्य विकास अधिकारी के रुप में भू्मिका क्या है:-

  • जिले में कल्याण कार्यक्रमों को लागू करने में अपनी भूमिका निभाना,
  • जिले में सार्वजनिक वितरण प्रणाली को सुव्यवस्थित रुप से चलाने में भूमिका निभाना,
  • जिले के सभी विकास कार्यक्रमों व योजनाओं को लागू करना,
  • जिले में लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण की नीति को प्रभाव में लाना,
  • जिले में राज्य के मध्यस्थ अधिकारी की भूमिका निभाना,
  • जिले के अनुसूचित जाति एवं जनजाति और दिव्यांगों की छात्रवृत्ति वितरण के मामलों को देखना,
  • जिले में कार्यरत स्वंसेवी संस्थाओं से सहयोग लेने की दिशा में कार्य करना,

जिला निर्वाचन अधिकारी के रुप में भूमिका:-

  • जिला निर्वाचन अधिकारी के रुप में कार्य करना,
  • जिले में सभी तरह के निर्वाचन कार्यों को सम्पन्न कराना,
  • जिले में होने वाले चुनावों का नियंत्रण व निरीक्षण करना,

आप जब देश के किसी भी न्यायालय में जाते हैं तो वकीलों को काला कोट और सफेद शर्ट ही पहने हुए ही क्यों देखते हैं। क्या आप जानते हैं कि वकील काले कोट क्यों पहनते हैं और सफेद बैंड क्यों लगाते हैं। आइए जानते हैं।- 

अधिवक्ता (वकील) काला कोट क्यों पहनते हैं 

  • इंग्लैंड की प्रिवी काउंसिल ने 1637 में अपने फैसले में कहा कि वकीलों को समाज के अनुसार कपड़े पहनने चाहिए। उसी समय से वकीलों ने पूरी लंबाई के काले रंग के गाउन पहनने की शुरुआत की।
  • भारतीय न्यायिक व्यवस्था अंग्रेजो द्वारा दी गयी न्यायिक व्यवस्था से ही चलती है। इसलिए भारतीय न्यायालयों में वर्ष 1961 में एडवोकेट एक्ट नियम के तहत वकीलों के लिए काला कोट पहनना अनिवार्य कर दिया गया।
  • भारत में वकील सफेद कपड़ों पर काले कोट और सफेद शर्ट पर सफेद रंग का बैंड लगाते हैं, जिसमें दो पट्टियां सामने की ओर होती है।
  • काले रंग का कोट वकीलों के बीच अनुशाशन और आत्मविश्वास के होने का प्रतीक माना जाता है और न्याय के प्रति उनमें विश्वास जगाता है। जबकि सफेद रंग के बैंड को पवित्रता और भोलेपन का प्रतीक कहा जाता है।
  • काले रंग का संबंध आज्ञापालन, पेशी और अधीनता से होता है। इसलिए वकीलों को न्याय के अधीन माना गया है। इस ड्रेस कोड ने दूसरे व्यवसायों की तुलना में वकीलों को अलग पहचान दी है।
  • काला रंग दृष्टिहीनता का भी प्रतीक है। ऐसा माना जाता है कि दृष्टिहीन व्यक्ति किसी से भी कोई पक्षपात नहीं करता। इसलिए भी वकील काला कोट पहनते हैं।
  • हालांकि अब हमारे देश में यह मांग उठने लगी है कि अंग्रेजों दी गयी इस ड्रेस कोड की व्यवस्था में बदलाव होना चाहिए और भारतीय समाज के अनुसार वकीलों के ड्रेस को निर्धारित किया जाना चाहिए।

भारतीय दण्ड संहिता की धारा 96 से लेकर 106 तक की धारा में सभी व्यक्तियों को आत्मरक्षा का अधिकार दिया गया है । व्यक्ति स्वयं की रक्षा किसी भी हमले या अंकुश या स्वयं की संपत्ति की चोरी, डकैती, शरारत व अपराधिक अतिचार के खिलाफ कर सकता है।

मौलिक अधिकार उन अधिकारों को कहा जाता है जो व्यक्ति के जीवन के लिये मौलिक होने के कारण संविधान द्वारा नागरिकों को प्रदान किये जाते हैं और जिनमें राज्य द्वार हस्तक्षेप नही किया जा सकता। ये ऐसे अधिकार हैं जो व्यक्ति के व्यक्तित्व के पूर्ण विकास के लिये आवश्यक हैं और जिनके बिना मनुष्य अपना पूर्ण विकास नही कर सकता है। इन अधिकारों का उल्लंघन नही किया जा सकता है। मौलिक अधिकार न्याय योग्य हैं तथा समाज के प्रत्येक व्यक्ति को समान रूप से प्राप्त होते हैं। मौलिक अधिकारों का वर्णन संविधान के भाग-3 में अनुच्छेद 12 से 35 तक वर्णन किया गया है। भारतीय संविधान में मौलिक अधिकार अमेरिका के संविधान से लिए गये हैं । 

भारत संविधान में कुल छ: मौलिक अधिकार हैं 

  1. समानता का अधिकार (अनुच्छेद 14 से 18)
  2. स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 19 से 22)
  3. शोषण के विरूद्ध अधिकार (अनुच्छेद 23 से 24)
  4. धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 25 से 28)
  5. सांस्कृतिक एवं शैक्षणिक अधिकार (अनुच्छेद 29 से 30)
  6. संवैधानिक उपचारों का अधिकार (अनुच्छेद 32) 

1.समानता का अधिकार (अनुच्छेद 14 से 18 तक) –

अनुच्छेद 14 के अनुसार सभी व्यक्तियों को राज्य के द्वारा कानून के समक्ष समानता और कानून का समान संरक्षण प्राप्त होगा ।

अनुच्छेद 15 के अनुसार:- राज्य किसी भी नागरिक के विरूद्ध धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग तथा जन्म स्थान आदि के आधार पर कोई विभेद नहीं करेगा।

बालकों और स्त्रियों की स्वाभाविक प्रवृत्ति को ध्यान में रखकर उनके संरक्षण के लिये उपबन्ध बनाने का अधिकार अनुच्छेद 15(3) के तहत राज्य को प्राप्त है।

अनुच्छेद 15(4) के अनुसार राज्य सामाजिक और शैक्षणिक दृष्टि से पिछडे और SC, ST के लिए विशेष प्रावधान कर सकता है।

अनुच्छेद 16 के अनुसार देश के समस्त नागरिकों को शासकीय सेवाओं में अवसर की समानता होगी ।

अनुच्छेद 16(3) के अनुसार किसी क्षेत्र में नौकरी देने के लिए निवास सम्बन्धी शर्त लगाई जा सकती है ।

अनुच्छेद 16(4) के अनुसार देश के पिछडे नागरिकों को उचित प्रतिनिधित्व के अभाव में आरक्षण की व्यवस्था की जा सकती है

अनुच्छेद 17 के अनुसार अस्पृश्यता का अन्त किया गया है । इसको समाप्त करने के लिए संसद ने अस्पृश्यता अपराध अधिनियम 1955 के तहत दण्डनीय बना दिया है । बाद में 1976 में इसको संशोधित करके सिविल अधिकार संरक्षण अधिनियम 1976 बनाया गया ।

अनुच्छेद 18 के अनुसार शिक्षा और सैनिक क्षेत्र को छोड़कर राज्य द्वारा सभी उपाधियों का अन्त कर दिया गया है

अनुच्छेद 18(2) के अनुसार भारत का कोई भी नागरिक किसी भी विदेशी पुरस्कार को राष्ट्रपति की अनुमति के बिना ग्रहण नहीं कर सकता । 

2.स्वतंत्रता का अधिकारः-(अनुच्छेद 19 से 22 तक)  

अनुच्छेद 19 के अनुसार नागरिक को 6 प्रकार की स्वतंत्रतायें दी गई है–

अनुच्छेद 19(A) – भाषण और विचार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता। अनुच्छेद 19(1) के अन्तर्गत प्रेस को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता दी गई है । इसी के तहत देश के नागरिकों को राष्ट्रीय ध्वज को फहराने की स्वतंत्रता दी गई है ! संविधान के प्रथम संशोधन अधिनियम 1951 के द्वारा विचार एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को सीमित कर दिया गया है। सरकार राज्य की सुरक्षा, सार्वजनिक कानून व्यवस्था, सदाचार, न्यायालय की अवमानना, विदेशी राज्यों से संबंध तथा अपराध के लिए उत्तेजित करना आदि के आधार पर विचार एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर प्रतिबंध लगा सकती है।

अनुच्छेद 19(B) के तहत शांतिपूर्ण तथा बिना हथियारों के नागरिकों को सम्मेलन करने और जुलूस निकालने का अधिकार होगा । राज्यों की सार्वजनिक सुरक्षा एवं शान्ति व्यवस्था के हित में इस। स्वतंत्रता को सीमित किया जा सकता है।

अनुच्छेद 19(C) भारतीय नागरिकों को संघ या संगठन बनाने की स्वतंत्रता दी गई हैं ! लेकिन सैनिकों को ऐसी स्वतंत्रता नहीं दी गई है

अनुच्छेद 19(D) देश के किसी भी क्षेत्र मे स्वतंत्रता पूर्वक भ्रमण करने की स्वतंत्रता ।

अनुच्छेद 19(E) देश के किसी क्षेत्र में स्थाई निवास की स्वतंत्रता। (जम्मू कश्मीर को छोड़कर)

अनुच्छेद 19(G) कोई भी व्यापार या कारोबार करने की स्वतंत्रता ।

अनुच्छेद 20 के अनुसार अपराधों के लिए दोष सिद्धि के संबध में संरक्षण दिया गया है

  1. किसी भी व्यक्ति को तब तक अपराधी नहीं माना जाएगा जब तक यह सिद्ध न हो जाये कि उसने किसी कानून का अल्लंघन किया है ।
  2. किसी व्यक्ति को किसी अपराध के लिए उससे अधिक दण्ड नहीं दिया जा सकता ।
  3. किसी व्यक्ति को एक ही अपराध के लिए एक बार से अधिक दण्ड नहीं दिया जा सकता ।
  4. किसी भी व्यक्ति को स्वयं अपने विरूद्ध गवाही देने या सबूत पेश करने के लिये बाध्य नहीं किया जा सकता ।

अनुच्छेद 21 के अनुसारः- किसी भी व्यक्ति को विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अतिरिक्त उसके जीवन और शरीर की स्वतंत्रता के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता ।

अनुच्छेद 21(क) के अनुसार 86वें संविधान संशोधन अधिनियम 2002 के तहत 6 से 14 वर्ष तक के बच्चों को अनिवार्य और निशुल्क शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार दिया गया है ।

अनुच्छेद 22 के अनुसार किसी भी व्यक्ति को बिना कारण बताए गिरफ्तार नहीं किया जा सकता और गिरफ्तार व्यक्ति को 24 घण्टे के अन्दर मजिस्ट्रेट के सामने पेश करना अनिवार्य है । 

  1. शोषण के विरू़द्ध अधिकार (23 से 24 तक)  

अनुच्छेद 23 के अनुसार मानव व्यापार व बेगार तथा बलात श्रम पर प्रतिबंध लगाया गया है । लेकिन राज्य सार्वजनिक उद्देश्यों के लिए

सार्वजनिक सेवा या श्रम योजना लागू कर सकती है। राज्य इस सेवा में धर्म, मूलवंश, जाति या वर्ग के आधार पर कोई भेदभाव नहीं करेगा। बंधुआ मजदूरी समाप्त करने के लिए 1975 में बंधुआ मजदूरी का उन्मूलन अधिनियम पारित किया गया ।

अनुच्छेद 24 के अनुसार बाल श्रम का निषेध किया गया है जिसके अनुसार 14 वर्ष से कम उम्र के किसी भी बच्चे को कारखानो, खदानों या खतरनाक कार्यों में नहीं लगाया जा सकता । 

  1. धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकारः- (25 से 28 तक)  

अनुच्छेद 25 के अनुसार देश के प्रत्येक नागरिक को किसी भी धर्म को मानने व आचरण करने और प्रचार करने का अधिकार है ! लेकिन सार्वजनिक व्यवस्था व समाज कल्याण एवं सुधार आदि के अन्र्तगत इस पर रोक लगाई जा सकती है

अनुच्छेद 26 के अनुसार धार्मिक प्रयोजन के लिए संस्था बनाने, उसका पोषण करने और धार्मिक कार्यों के प्रबन्ध के लिये सम्पत्ति अर्जित करने का अधिकार है ।

अनुच्छेद 27 के अनुसारः- किसी भी व्यक्ति को किसी धर्म या सम्प्रदाय विशेष के पोषण हेतु कर देने के लिए बाध्य नहीं किया जाएगा ।

अनुच्छेद 28 के अनुसारः- राज्य निधि से वित्त पोषित या आर्थिक सहायता प्राप्त शिक्षण संस्थाओं में धार्मिक शिक्षा नहीं दी जाएगी और न ही किसी व्यक्ति को धार्मिक शिक्षा या धार्मिक अनुष्ठान में भाग लेने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता। 

  1. संस्कृति और शिक्षा सम्बन्धी अधिकार (29से 30 तक) 

अनुच्छेद 29 के अनुसार देश के प्रत्येक नागरिक को अपनी भाषाए लिपि या संस्कृति को सुरक्षित रखने का पूर्ण अधिकार होगा ! राज्य द्वारा आर्थिक सहायता प्राप्त किसी भी शिक्षण संस्था में किसी भी नागरिक को धर्म व मूलवंश व जाति और भाषा आदि के आधार पर प्रवेश लेने से वंचित नही किया जा सकता ।

अनुच्छेद 30 के अनुसारः- धर्म या भाषा पर आधारित सभी अल्प संख्यक वर्गो को अपनी पसंद की शिक्षण संस्थाओं की स्थापना करने और प्रशासन का अधिकार होगा और राज्य इस आधार पर शिक्षा संस्थाओ को आर्थिक सहायता देने के लिए कोई विभेद नही करेगा ।

  1. संवैधानिक उपचारों का अधिकार (अनु. 32)  

अनुच्छेद 32 के अनुसार यह अधिकार मौलिक अधिकारों के लिए प्रभावी कार्यवाईयाॅं न्यायलय के द्वारा करवाता है । इस अधिकार के तहत यदि किसी व्यक्ति के मौलिक अधिकार का उल्लघन हुआ है तो वह सीधे सर्वोच्च न्यायालय में जा सकता है ।

अनुच्छेद 32 को डा. भीमराव अम्वेडकर ने भारतीय संविधान की आत्मा कहा है।

अनुच्छेद 32 के तहत सर्वोच्च न्यायालय को और अनुच्छेद 226 के तहत उच्च न्यायालय को मौलिक अधिकारों के संरक्षण हेतु 5 रिटे जारी करने का अधिकार है –

  1. बन्दी प्रत्यक्षीकरण – इसके अन्तर्गत गैर कानूनी या अवैधानिक रूप से बन्द किये गये किसी भी व्यक्ति को सामने लाने हेतु न्यायालय द्वारा आदेश दिया जा सकता है । यह आदेश किसी भी शासकीय कर्मचारी या किसी भी व्यक्ति के लिए जारी किया जा सकता है ।
  2. परमादेश – यह आदेश सार्वजनिक पद पर काम करने वाले अधिकारियों व सरकार तथा अधीनस्थ न्यायालयों एवं न्यायिक अभिकरण के विरूद्ध़ जारी किया जा सकता है यदि वे अपने कर्तव्यों का सही पालन नही कर रहे हो किन्तु यह किसी संस्था या व्यक्ति के विरूद्ध जारी नही किया जा सकता है ।
  3. प्रतिषेध – यह निम्न न्यायालयों को जारी की जाने वाली निषेधाज्ञा है जिसमें यह आदेश दिया जाता है कि वे किसी मामले विशेष मे कोई कार्यवाही न करें क्योंकि यह मामला उनके अधिकार क्षेत्र से बाहर है ।
  4. उत्प्रेषण – इसके द्वारा निम्न न्यायालय के किसी भी केस को या जानकारी को उच्च न्यायालय अपने पास मंगा सकता है यह रिट उस समय जारी की जा सकती है जब निम्न न्यायालय किसी मामले की सुनवाई कर चुका हो ।
  5. अधिकार पृच्छा – इस रिट द्वारा न्यायालय किसी भी ऐसे व्यक्ति से जो किसी सार्वजनिक पद पर अवैधानिक रूप से कार्य कर रहा होता है। तो उससे पूछा जाता है कि आप इस पद पर किस अधिकार से कार्य कर रहे हैं । 

मौलिक अधिकारों का निलम्बन  

अनुच्छेद 33 संसद को यह शक्ति प्रदान करती है वि वह स्वतंत्र बलों, अद्धसैनिक बलों, खूफिया ऐजेन्सियों के सदस्यों के संबंध में मौलिक अधिकारो को प्रतिबंधित कर सकती है। ताकि वे अपने कर्तव्यों का उचित पालन कर सकें और उनके अनुशासन बना रहे।

अनुच्छेद 34 मौलिक अधिकारों पर तब प्रतिबंध लगाता है जब भारत में कही भी सेना विधि (मार्शल ला) लागू हो मार्शल लाॅं के क्रियान्वयन के समय सैन्य प्रशासन के पास जरूरी कदम उठाने के लिए असाधारण अधिकार मिल जाते हैं वे अधिकारों पर प्रतिबंध यहां तक कि किसी मामले में नागरिकों को मृत्युदंड तक लागू कर सकता है।

अनुच्छेद 352 के तहत राष्ट्रपति द्वारा राष्ट्रीय आपात की घोषणा होने पर उसके द्वारा अनुच्छेद 359 के तहत सभी मौलिक अधिकार निलम्बित किये जा सकते हैं । परन्तु 44वें संविधान संशोधन के पश्चात अनुच्छेद 20 व 21 किसी भी स्थिति में निलबिंत नही किये जा सकते । 

नोट – अनुच्छेद – 15,16,19,29 व 30 के अन्तर्गत प्राप्त मौलिक अधिकार केवल भारतीय नागरिकों के लिए है । जबकि शेष सभी अधिकार सभी व्यक्तियों के लिये हैं ।

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नागरिक का मौलिक कर्तव्य

(क) संविधान का पालन करें और उसके आदर्शों, राष्ट्र ध्वज और राष्ट्र्गान का आदर करें। 

(ख) स्वतंत्रता के लिए हमारे राष्ट्रीय आन्दोलन प्रेरित करने वाले उच्च आदर्शो को हृदय में संजोए रखें व उनका पालन करें।

(ग) भारत की प्रभुता एकता व अखंडता की रक्षा करें और उसे अक्षुण्ण बनाये रखें। 

(घ) देश की रक्षा करें और आवाह्न किए जाने पर राष्ट् की सेवा करें। 

(ङ) भारत के सभी लोग समरसता और सम्मान एवं भ्रातृत्व की भावना का निर्माण करें जो धर्म, भाषा और प्रदेश या वर्ग के भेदभाव पर आधारित न हों, उन सभी प्रथाओं का त्याग करें जो महिलाओं के सम्मान के विरुद्ध हों।

(च) हमारी सामाजिक संस्कृति की गौरवशाली परम्परा का महत्त्व समझें और उसका परिरक्षण करें। 

(छ) प्राकृतिक पर्यावरण जिसके अंतर्गत वन, झील,नदी वन्य प्राणी आदि आते हैं की रक्षा व संवर्धन करें तथा प्राणी मात्र के प्रति दयाभाव रखें।

(ज) वैज्ञानिक दृष्टिकोण मानवतावाद व ज्ञानार्जन तथा सुधार की भावना का विकास करें । 

(झ) सार्वजनिक सम्पत्ति को सुरक्षित रखें व हिंसा से दूर रहें। 

(ञ) व्यक्तिगत और सामूहिक गतिविधियों के सभी क्षेत्रों में सतत उत्कर्ष की ओर बढ़ने का प्रयास करें, जिससे राष्ट्र प्रगति करते हुए प्रयात्न और उपलब्धि की नई ऊँचाइयों को छू ले।

(ट) यदि आप माता-पिता या संरक्षक हैं तो 6 वर्ष से 14 वर्ष आयु वाले अपने या प्रतिपाल्य (यथास्थिति) बच्चे को शिक्षा के अवसर प्रदान करें।

बंदी (कैदी) का अधिकार