किसी भी व्यक्ति द्वारा जानबूझकर किया गया दण्डनीय कार्य-
- किसी अभियुक्त को शरण देना।
- किसी पर गलत आरोप लगाना या झूठी गवाही देना।
- किसी अभियुक्त को छिपाना या साक्ष्य को खत्म करना।
- जाली सिक्का नोट अपने पास रखना।
- लोकसेवक के कार्य में बाधा डालना।
- सार्वजनिक स्थान पर जुआ खेलना।
- किसी भी धर्मस्थान को उसकी अवमानना हेतु अपवित्र करना।
- दूसरों की धार्मिक भावना को ठेस पहुंचाने वाले शब्दों का इस्तेमाल करना।
- बिना लाइसेंस के आग्नेय अस्त्र या विस्फोटक पदार्थ रखना।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 39 के अनुसार-
- यह देश के सभी नागरिकों और निवासियों को यह दायित्व सौंपती है कि कुछ खास तरह के गंभीर अपराधों के घटित होने अथवा ऐसे गंभीर अपराध किए जाने की तैयारी की उन्हें जानकारी हो तो उन्हें इस की सूचना तुरन्त निकटतम पुलिस स्टेशन अधिकारी अथवा मजिस्ट्रेट को देनी चाहिए।
- यदि किसी व्यक्ति को ऐसी जानकारी होते हुए भी वह ऐसी जानकारी पुलिस स्टेशन के भारसाधक अधिकारी अथवा मजिस्ट्रेट को नहीं देता है तो पता लगने पर कि उसे ऐसी जानकारी थी उसे यह साबित करना होगा कि ऐसी सूचना नहीं देने का उस के उचित कारण था।
- इस धारा में उन अपराधों की सूची दी हुई है जिन की सूचना देने का दायित्व प्रत्येक व्यक्ति को दिया गया है। इस सूची में भारतीय दंड संहिता की धारा 121 से 126,130,143 से 145, 147, 161 से 165-ए, 272 से278, 302, 303, 304, 382, 392 से 399, 409, 431 से 439 449, 450, 456 से 460 और धारा 489ए से489ई सम्मिलित हैं।
इनमें मुख्य रुप से शामिल हैं-
- राज्य के विरुद्ध अपराध, लोक प्रशान्ति के विरुद्ध अपराध, अवैध परितोषण से संबंधित अपराध, खाद्य और औषधियों के अपमिश्रण से संबंधित अपराध, जीवन को संकट में डालने वाले अपराध, फिरौती आदि के लिए अपहरण करने के अपराध, चोरी करने के लिए मृत्यु या अवरोध पैदा करने के पश्चात चोरी का अपराध, लूट और डकैती, ग़बन, संपत्ति की ठगी का अपराध, गृह भेदन और करेंसी नोटों और बैंक नोटों से संबंधी अपराध सम्मिलित हैं।