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चार्जशीट कितने दिनों में दाखिल होती है

चार्जशीट कितने दिनों में दाखिल होती है

आरोप पत्र (चार्जशीट) क्या है

पुलिस किसी भी मामले में एफआईआर दर्ज करने के बाद, उसकी जांच करती है। जब  जांच के दौरान पुलिस को लगता है कि मामले में पर्याप्त साक्ष्य मौजूद हैं तो वह उस केस में मुकदमा चलाने के लिए न्यायालय में आरोप पत्र या चार्जशीट पेश करती है। इसे पुलिस चालान भी कहा जाता है।

चार्जशीट कितने दिनों में दाखिल होती है

आपके लिए यह जानना जरुरी है कि चार्जशीट किस सूरत में और कितने दिनों के भीतर दाखिल की जा सकती है। किसी भी केस में छानबीन पूरी करने के बाद पुलिस अधिकारी सीआरपीसी की धारा-173 में चार्जशीट दाखिल करते हैं। 

  • जिस केस में कम-से-कम 10 साल कैद और ज्यादा-से-ज्यादा उम्रकैद या फांसी का प्रावधान हो, उसमें आरोपी की गिरफ्तारी के 90 दिनों के भीतर जांच एजेंसी को चार्जशीट दाखिल करनी होती है, नहीं तो आरोपी को जमानत मिल जाती है। 
  • इसके अलावा, दूसरे मामलों में आरोपी की गिरफ्तारी के 60 दिनों के अंदर चार्जशीट दाखिल करनी होती है। ऐसा न करने पर आरोपी को जमानत दिए जाने का प्रावधान है। 
  • आरोपी की गिरफ्तारी के 90 दिनों के भीतर पुलिस द्वारा मामले की जांच कराई जाती है। जांच में यदि आरोप सही पाया जाता है तो मुकदमा पंजीकृत होगा। अन्यथा निरस्त कर दिया जाएगा। यह अधिकार जांच अधिकारी को है।
  • यदि जांच अधिकारी आपकी बात नहीं सुन रहा है तो आप सीओ, एएसपी, एसपी से शिकायत कर सकते हैं। इसके बावजूद भी सुनवाई न होने पर आईजी से शिकायत कर सकते हैं। 
  • जांच एजेंसी की चार्जशीट के बाद अदालत साक्ष्यों और तथ्यों के आधार पर आरोपियों के खिलाफ संज्ञान लेती है और उन्हें समन जारी करती है। इसके बाद आरोप पर बहस होती है। 
  • यदि आरोपी के खिलाफ जांच एजेंसी को सबूत न मिले, तो वह सीआरपीसी की धारा-169 के तहत क्लोजर रिपोर्ट दाखिल कर देती है। अदालत क्लोजर रिपोर्ट में पेश तथ्यों को देखती है और फिर मामले के शिकायती को नोटिस जारी करती है। शिकायती को अगर क्लोजर रिपोर्ट पर आपत्ति है तो वह इसे दर्ज कराता है। क्लोजर रिपोर्ट पर जांच एजेंसी की दलीलों को भी अदालत सुनती है। 
  • यदि अदालत को लगता है कि आरोपी के खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए सबूत नहीं हैं तो वह क्लोजर रिपोर्ट को स्वीकार कर लेती है और केस बंद करने का हुक्म देते हुए आरोपियों को बरी कर देती है।
  • क्लोजर रिपोर्ट के साथ पेश तथ्यों और साक्ष्यों को देखने के बाद अगर अदालत को लगता है कि आरोपी के खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए साक्ष्य हैं तो वह उसी क्लोजर रिपोर्ट को चार्जशीट की तरह मानते हुए आरोपी को समन जारी कर सकती है।
  • यदि अदालत क्लोजर रिपोर्ट से संतुष्ट नहीं होती, तो जांच एजेंसी को आगे जांच के लिए कह सकती है।
  • जानकार बताते हैं कि एक बार क्लोजर स्वीकार होने के बाद भी जांच एजेंसी को बाद में आरोपियों के खिलाफ भरपूर सबूत मिल जाएं, तो दोबारा चार्जशीट दाखिल की जा सकती है, लेकिन एक बार ट्रायल खत्म हो जाए और आरोपी बरी हो जाए तो उसी केस में दोबारा केस नहीं चलाया जा सकता। 

मुकदमा वापस ले सकते हैं

सीआरपीसी की धारा-321 के तहत अभियोजन पक्ष सार्वजनिक हित में मुकदमा वापस लेने की अर्जी दाखिल कर सकता है। इसके लिए सरकारी वकील सरकार से स्वीकृति लेता है और कोर्ट में दलील पेश करता है कि सार्वजनिक हित में मुकदमा चलाना ठीक नहीं है। लिहाजा केस वापस लेने की अनुमति दी जाए। जब अदालत सरकारी वकील की दलीलों से संतुष्ट होती है, तभी वह मुकदमा वापस लेने की अनुमति देती है। यदि सरकारी पक्ष की दलीलों से अदालत संतुष्ट नहीं है तो वह मुकदमा वापस लेने की अर्जी को ठुकरा सकती है।

 

नागरिक का मौलिक कर्तव्य

(क) संविधान का पालन करें और उसके आदर्शों, राष्ट्र ध्वज और राष्ट्र्गान का आदर करें। 

(ख) स्वतंत्रता के लिए हमारे राष्ट्रीय आन्दोलन प्रेरित करने वाले उच्च आदर्शो को हृदय में संजोए रखें व उनका पालन करें।

(ग) भारत की प्रभुता एकता व अखंडता की रक्षा करें और उसे अक्षुण्ण बनाये रखें। 

(घ) देश की रक्षा करें और आवाह्न किए जाने पर राष्ट् की सेवा करें। 

(ङ) भारत के सभी लोग समरसता और सम्मान एवं भ्रातृत्व की भावना का निर्माण करें जो धर्म, भाषा और प्रदेश या वर्ग के भेदभाव पर आधारित न हों, उन सभी प्रथाओं का त्याग करें जो महिलाओं के सम्मान के विरुद्ध हों।

(च) हमारी सामाजिक संस्कृति की गौरवशाली परम्परा का महत्त्व समझें और उसका परिरक्षण करें। 

(छ) प्राकृतिक पर्यावरण जिसके अंतर्गत वन, झील,नदी वन्य प्राणी आदि आते हैं की रक्षा व संवर्धन करें तथा प्राणी मात्र के प्रति दयाभाव रखें।

(ज) वैज्ञानिक दृष्टिकोण मानवतावाद व ज्ञानार्जन तथा सुधार की भावना का विकास करें । 

(झ) सार्वजनिक सम्पत्ति को सुरक्षित रखें व हिंसा से दूर रहें। 

(ञ) व्यक्तिगत और सामूहिक गतिविधियों के सभी क्षेत्रों में सतत उत्कर्ष की ओर बढ़ने का प्रयास करें, जिससे राष्ट्र प्रगति करते हुए प्रयात्न और उपलब्धि की नई ऊँचाइयों को छू ले।

(ट) यदि आप माता-पिता या संरक्षक हैं तो 6 वर्ष से 14 वर्ष आयु वाले अपने या प्रतिपाल्य (यथास्थिति) बच्चे को शिक्षा के अवसर प्रदान करें।

बंदी (कैदी) का अधिकार