खूंटी (झारखंड)। केंद्र सरकार ने सरकारी योजनाओं में भ्रष्टाचार रोकने के लिए राशनिंग व्यवस्था को ऑनलाइन तो कर दिया है, लेकिन इस व्यवस्था के ठीक तरीके से काम न करने के चलते खूंटी के तिलमा पंचायत लोगों की जिंदगी मुश्किल में पड़ गयी है। ग्रामीण हर रोज राशन आस में राशन की दुकान पर पहुंचते हैं, लेकिन घंटों इंतजार के बाद उन्हें खाली हाथ निराश होकर लौटना पड़ता है, क्योंकि इंटरनेट नेटवर्क गायब होने की वजह से उनका अंगूठा स्कैन नहीं हो पाता है।
झारखंड के खूंटी जिले के तिलमा पंचायत में इंटरनेट नेटवर्क के गायब रहने के ग्रामीणों की जिंदगी मुश्किल में पड़ गयी है। वह हर रोज राशन की दुकान से राशन मिलने की उम्मीद में भरपेट भोजन करने का सपना तो देखते हैं, लेकिन शाम होते यह सपना चकनाचूर हो जाता है। और यूं ही उन्हें खाली हाथ लौटना पड़ता है। ऐसी ही दास्तां ग्रामीण करिया मुंडा की भी है, जो अनाज पाने की आस में रोज राशन की दुकान पर पहुंचते हैं, लेकिन घंटों इंतजार के बाद भी उन्हें राशन नहीं मिलता है, क्योंकि बारिश के चलते तिलमा गांव समेत कई गावों का नेटवर्क गायब है। जिसकी वजह से सर्वर डाउन है। वहीं घर पर भरपेट भोजन करने का सपना संजोए उनका बेटा घर पहुंचने पर उनसे सवाल करता है कि बाबा भर पेट खाना कब मिलेगा। बेटे के इस सवाल से दु:खी और हताश करिया मुंडा जवाब देते हैं कि बेटा नेटवर्क आएगा तभी तो राशन मिलेगा।
वहीं तिलमा पंचायत के राशन की दुकान की डीलर सुनीता पूर्ति का कहना है कि जब तक अंगूठा नहीं लगेगा तब तक राशन कैसे दिया जा सकता है। क्योंकि ऑनलाइन में यह प्रावधान किया गया है कि राशन लेने के लिए संबंधित व्यक्ति को अंगूठा लगाना ही होगा, जो अनिवार्य है। इस कारण से तिलमा के ग्रामीण रोज की तरह राशन की आस में नेटवर्क के लिए अंगूठा लगाने वाली मशीन, तार और एंटीना लेकर सड़क पर टहलते नजर आते हैं। वह इस उम्मीद में यह प्रयास करते हैं, जिससे कि कहीं आसपास नेटवर्क पकड़ ले, और उन्हें उनका राशन मिल जाए, लेकिन उन्हें निराशा ही हाथ लगती है। नेटवर्क के अभाव में एक भी ग्रामीण को रविवार को भी राशन नहीं मिल पाया। इस व्यवस्था से आक्रोशित ग्रामीणों का कहना है कि ऑनलाइन व्यवस्था में कोई सुधार नहीं हो रहा है, और अनाज न मिलने से बच्चे घर में बिलख रहे हैं। इससे अच्छा तो मैनुअल काम ही ठीक था। महिलाओं ने नाराजगी जताते हुए कहा कि उन्हें खेती-बाड़ी का काम छोड़कर रोज राशन दुकान के चक्कर काटना पड़ता है, न जाने ऐसा कितने दिन चलेगा। अब गौर करने वाली बात यह है कि आखिर प्रशासन कब नींद से जागेगा और इन ग्रामीणों को राशन के दर्शन होंगे।