नई दिल्ली। लोकसभा में सूचना का अधिकार कानून में संशोधन संबंधी बिल पास होने के बाद विपक्ष ने राज्यसभा में इसका तगड़ा विरोध करने का फैसला किया है। विपक्षी पार्टियों के साथ ही बीजू जनता दल और तेलंगाना राष्ट्र समिति ने भी आरटीआइ संशोधन बिल को सेलेक्ट कमिटी में भेजने के प्रस्ताव का समर्थन किया है। विपक्ष का आरोप है कि इस संशोधन बिल को आरटीआइ कानून को कमजोर कर सूचना हासिल करने को ज्यादा मुश्किल बनाने के लिए लाया गया है।
सूचना का अधिकार संशोधन विधेयक 2019 सोमवार को विपक्ष के भारी विरोध के बावजूद लोकसभा में पास हो गया। इस विधेयक में प्रावधान किया गया है कि मुख्य सूचना आयुक्त एवं सूचना आयुक्तों तथा राज्य मुख्य सूचना आयुक्त एवं राज्य सूचना आयुक्तों के वेतन, भत्ते और सेवा की अन्य शर्तें केंद्र सरकार द्वारा तय की जाएंगी। कांग्रेस के राज्यसभा सदस्य राजीव गौड़ा ने कहा कि यदि सरकार को आरटीआई आयुक्तों का कार्यकाल तय करने की आजादी मिल जाएगी, तो उनकी शक्ति कमजोर हो जाएगी। जबकि कांग्रेस संसदीय दल की नेता सोनिया गांधी ने कहा है कि इस संशोधन बिल के जरिये सरकार ऐतिहासिक आरटीआइ कानून को ध्वस्त करने पर आमादा है। उन्होंने सरकार के कदम को नागरिकों से उनका हक छीनने जैसा करार दिया है। वहीं विपक्ष ने इस संशोधन को इस बिल की मूल भावना को मारने और पारदर्शिता की स्वतंत्रता पर हमला बताया है। इसीलिए विपक्ष ने आरटीआइ संशोधन बिल को राज्यसभा की सेलेक्ट कमिटी को भेजने की संयुक्त रणनीति बनाई है। कांग्रेस के अलावा तृणमूल कांग्रेस, द्रमुक, राजद, एनसीपी समेत 16 पार्टियों के सांसदों ने आरटीआइ संशोधन बिल को सेलेक्ट कमिटी में भेजने के प्रस्ताव पर हस्ताक्षर कर दिए हैं। आरटीआई संशोधन बिल लोकसभा से पारित होने के बाद सरकार बुधवार को राज्यसभा में पेश करने की तैयारी में है।
वहीं देश के पहले मुख्य सूचना आयुक्त वजाहत हबीबुल्ला ने भी आरटीआई कानून में संशोधन के लिए केंद्र सरकार के कदम को अस्वीकार कर दिया। उन्होंने कहा, 'अगर आपके पास जानकारी लाने वाले लोग सच बताने से डरेंगे, तो जानकारी आप तक कैसे पहुंचेगी?' 'क्या हमारे पास प्रधानमंत्री के पास जाने और अपनी समस्याओं को रखने का अधिकार है? नहीं, ऐसा करने का एकमात्र नैतिक तरीका आरटीआई के माध्यम से है।
जबकि प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्य मंत्री जितेंद्र सिंह ने सरकार का पक्ष रखते हुए मीडिया को बताया कि सेक्शन 27 में संशोधन करने के बाद ही सरकार को नियम बनाने का अधिकार मिलता है। सेक्शन 13 और 16 में संसोधन किया जा रहा है ताकि सूचना आयुक्त का कार्यकाल और उनके कार्यालय की नियम व शर्तें तय की जा सकें। यह बिल आरटीआई ऐक्ट को और युक्तिसंगत बनाने के लिए है। उन्होंने कहा, 'इस बिल की स्वायत्ता के साथ किसी तरह का समझौता नहीं किया गया है। इस प्रकार के जो भी धारणा बनाई जा रही है वह गलत प्रायोजित है। यह बिल विधायिका को और ताकत देने वाला है।'