नई दिल्ली। राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद पर सर्वोच्च न्यायालय ने अगली सुनवाई 10 जनवरी तक के लिए टाल दी है। अब 10 जनवरी को मामला सर्वोच्च न्यायालय की तीन जजों की स्पेशल बेंच के सामने जाएगा। इस बेंच में शामिल जजों के नाम का ऐलान 6 या 7 जनवरी को कर दिया जाएगा। सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश कहना था कि इस मामले की सुनवाई के लिए एक रेग्युलर बेंच बनेगी, जो 10 जनवरी को इस मामले में आगे के आदेश परित करेगी। इस दौरान मुख्य न्यायाधीश ने वकील हरिनाथ राम की तरफ से दाखिल की गई उस जनहित को भी खारिज कर दिया , जिसमें अयोध्या विवाद की रोजाना सुनवाई की मांग की गई थी। हैरानी की बात यह है कि जब मुख्य न्यायाधीश के सामने राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद मामला आया तो उन्होंने महज 60 सेकेंड ही में मामले की सुनवाई 10 जनवरी तक के लिए टाल दी। 10 जनवरी से पहले इस मामले के लिए नई बेंच का गठन किया जाएगा. अब नई बेंच ही ये तय करेगी कि क्या ये मामला फास्टट्रैक में सुना जाना चाहिए या नहीं.जबकि मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई और जस्टिस संजय किशन कौल की बेंच से इस मामले में जल्द सुनवाई की मांग की गयी थी। जबकि इस मामले में पहले पूर्व चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय बेंच सुनवाई कर रही थी। ऐसे में दो सदस्यीय बेंच विस्तृत सुनवाई नहीं कर सकती। इस पर तीन या उससे अधिक जजों की बेंच ही सुनवाई करेगी। नई बेंच इलाहाबाद हाईकोर्ट के सितंबर 2010 के फैसले के खिलाफ दायर 14 अपीलों पर सुनवाई करेगी।
वहीं हिंदू महासभा के वकील का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट 10 जनवरी को इस मामले को सुनेगा, तब तक नई बेंच का गठन कर लिया जाएगा. उनका कहना है कि सुप्रीम कोर्ट जब 10 जनवरी को इस मामले को सुनेगा तो हम अपील करेंगे कि वह इस मामले की रोजाना सुनवाई करे. अगर सुप्रीम कोर्ट इस मामले को दोबारा सुनता है तो अगले 60 दिनों में इसका फैसला आ सकता है. हिंदू महासभा के वकील का कहना है कि वह सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से खुश हैं. जबकि बाबरी केस के पक्षकार इकबाल अंसारी का कहना था कि राम मंदिर पर केंद्र सरकार को अध्यादेश नहीं लाना चाहिए. उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बिल्कुल सही कहा है कि मामला सुप्रीम कोर्ट में है और हमें फैसले का इंतजार करना चाहिए.
आपको बता दें कि 30 सितंंबर, 2010 को इलाबाद उच्च न्यायालय की तीन सदस्यीय बेंच ने 2.1 के बहुत वाले फैसले में कहा था कि 02.77 एकड़ जमीन को तीनों पक्षों सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और राम लला के बीच बराबर-बराबर बांट दिया जाए। हालांकि इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले को किसी भी पक्ष ने नहीं स्वीकार किया और उसे सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दे दी । वहीं इस मामले की सुनवाई के बाद सर्वोच्च न्यायालय ने 09 मई को इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले पर रोक लगा दी। उस समय से अब तक आठ साल हो गए हैं, लेकिन अभी तक इस पर कोई फैसला नहीं आया है।