लखनऊ (उत्तर प्रदेश)। पुलिस की लाठियां खाने और इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश के बाद आखिकार बीपीएड अभ्यर्थियों की उम्मीदें जाग गयी हैं। गोरखपुर में आठवीं बार अभ्यर्थियों से मुलाकात के बाद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भरोसा दिया कि वह जल्दी ही इस भर्ती को करवाएंगे। लखनऊ पहुंचते ही उन्होंने अपर मुख्य सचिव बेसिक शिक्षा राज प्रताप सिंह से अतिरिक्त प्रभार ले लिया । और उनकी जगह अवनीश अवस्थी को अपर मुख्य सचिव बना दिया। राज प्रताप सिंह पर आरोप है कि उन्होंने धमकी दी थी कि जब तक हम इस कुर्सी पर हैं इस भर्ती को नहीं करेंगे। इससे ऐसा लगता है कि योगी सरकार में नौकरशाह बेलगाम हैं या फिर मुख्यमंत्री प्रदेश के नव जवानों की जिंदगी से खिलवाड़ कर रहे हैं। वहीं बेसिक शिक्षा मंत्री का कहना है कि हम विश्वास दिला रहें कि हम सुप्रीम कोर्ट नहीं जायेंगे और भर्ती करने चल रहे हैं। हो सकता है जून में शुरू कर दें। हालांकि अभी तक भर्ती की कोई तारीख नहीं घोषित की गयी है।
बीपीएड अभ्यर्थियों का आरोप है कि हाईकोर्ट के आदेश के बाद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने 28 मार्च 2018 को अधिकारियों को आदेश दिया था कि 1 सप्ताह के अंदर भर्ती की प्रक्रिया को जल्दी से जल्दी बहाल किया जाए। इसको लेकर 4 अप्रैल 2018 को अधिकारियों के साथ अभ्यर्थियों की बैठक भी हुई थी। इस बैठक में अधिकारियों ने आश्वासन दिया था कि 1 सप्ताह के भर्ती प्रक्रिया शुरु कर दी जाएगी। इलाहाबाद हाईकोर्ट की डबल बेंच ने 12 अप्रैल 2018 को आदेश दिया था कि बीपीएड अभ्यर्थियों की भर्ती 2 महीने के अंदर कर दी जाए और कंप्लाइंस रिपोर्ट सबमिट की जाए। लेकिन इन तानाशाह अधिकारियों ने अभी तक कोई कार्यवाही नहीं की है। सरकार पर आरोप है कि उसने 32022 खेल अनुदेशकों की भर्ती में धांधली की समीक्षा करने के नाम पर रोक दिया है।
वहीं समाजवादी पार्टी का आरोप है कि अनुदेशकों की भर्तियां इसलिए नहीं की जा रही हैं क्योंकि योगी आदित्यनाथ की सरकार का कहना है कि यह समाजवादी पार्टी की सरकार का पाप है हम भला इसे क्यों ढोएं। ऐसी दशा में यदि नया नोटिफिकेश जारी होता है तो ज्यादा उम्र हो जाने की वजह से 5 हजार अभ्यर्थी इस भर्ती से बाहर हो जाएंगे, जो उचित नहीं है। हालांकि बीजेपी का कहना है कि जल्दी ही बीपीएड अभ्यर्थियों की भर्ती की जाएगी, लेकिन उन्होंने कोई निश्चित तारीख नहीं बतायी। उनका कहना है कि यह मामला अभी केंद्र और राज्य के बीच पैसे के कंट्रीब्यूशन को लेकर फंसा हुआ है। और जल्दी ही इसका समाधान करवा दिया जाएगा।
जबकि बीपीएड अभ्यर्थियों का कहना है कि उन्हें सरकार के आश्वासन पर भरोसा नहीं है। क्योंकि योगी सरकार डेढ़ साल से आश्वासन ही दे रही है। बेसिक शिक्षा मंत्री और अधिकारियों से बातचीत के बाद सिर्फ आश्वासन ही मिला है, अब तक कुछ हुआ नहीं है। वहीं 2011 और 2015 में भर्ती के लिए प्रदर्शन कर रहे अभ्यर्थियों को समाजवादी पार्टी की सरकार ने लाठियों से पिटवाया और कई अभ्यर्थियों के खिलाफ मुकदमे दर्ज करवा दिए। इस आंदोलन के कारण 2015 में 150 नव जवान एक महीने तक जेल में रहे। और आज भी मुकदमे लड़ रहे हैं। सरकार को चाहिए कि वह सभी अभ्यर्थियों के ऊपर से मुकदमे वापस ले।
आपको बता दें कि 2010 से ये अभ्यर्थी आंदोलन कर रहे हैं। 10 वर्ष के लंबे आंदोलन के बाद समाजवादी पार्टी की सरकार ने नवंबर 2016 में 7000 के मासिक संविदा के तहत 32022 खेल अनुदेशकों की भर्ती की प्रक्रिया शुरु की थी। काउंसलिंग की समय सारणी भी जारी कर दी गयी थी। करीब डेढ़ लाख बीपीएड धारी आवेदकों ने आवेदन किया था। लेकिन जैसे ही प्रदेश में सत्ता का परिवर्तन हुआ। इस भर्ती को समीक्षा के नाम पर 23 मार्च 2017 को रोक दिया गया । इसके बाद अभ्यर्थियों ने बीजेपी कार्यालय, विधानसभा के सामने, जिलाधिकारी समेत पूरे प्रदेश में अपनी मांगों को लेकर प्रदर्शन किया। हर बार यही आश्वासन दिया गया कि समीक्षा हो रही है जब समीक्षा पूरी हो जाएगी तो भर्ती प्रक्रिया को शुरु कर दिया जाएगा। इससे निराश होकर अभ्यर्थी इलाहाबाद हाईकोर्ट की शरण में गए । और इलाहाबाद हाईकोर्ट की सिंगल बेंच ने 03 नवंबर 2017 को आदेश दिया कि सरकार एक महीने के अंदर भर्ती की प्रक्रिया को पूरा करे। लेकिन सरकार भर्ती की प्रक्रिया को पूरी करने की बजाय इलाहाबाद हाईकोर्ट चली गयी। इसके बाद दोबारा अभ्यर्थी 12 अप्रैल 2018 को इलाहाबाद हाईकोर्ट की डबल बेंच में गए। हाईकोर्ट ने प्रदेश की योगी सरकार को झटका देते हुए आदेश दिया कि 2 महीने के अंदर भर्ती की प्रक्रिया को पूरा करे। इसके बाद अभ्यर्थी मुख्यमंत्री, बेसिक शिक्षा मंत्री और प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष से मिले, लेकिन सिर्फ आश्वासन ही दिया गया, कोई कार्यवाही नहीं की गयी ।
गौरतलब है कि नवंबर 2016 में निकाली गयी 32022 खेल अनुदेशक भर्ती मेरिट के आधार पर है और कोई भी काउंसलिंग नहीं हुई है। इसलिए यह पूर्णतया सुरक्षित है अक्सर संविदा की भर्ती में राज्य सरकार बजट का रोना रोती है, जबकि माननीय इलाहाबाद हाईकोर्ट के द्वारा पहले ही सिंगल बेंच में राज्य सरकार की यह दलील दलील ठुकरा दी गई और सुप्रीम कोर्ट का भी निर्देश है कि बजट के मामले में शिक्षक भर्तियों में राज्य सरकारें बहाने नहीं कर सकती, क्योंकि यह पूर्णतया कैबिनेट से पास होते हुए अनुपूरक बजट में पूर्व मुख्यमंत्री के द्वारा पहले ही पास करवा दिया गया था। इसलिए योगी सरकार राजनीतिक दुश्मनी के लिए इस वैकेंसी को निरस्त नहीं कर सकती। जब मामला न्यायालय में हो को निरस्त करने और भर्ती कराने का अधिकार केवल और केवल माननीय इलाहाबाद हाईकोर्ट के पास है । उत्तर प्रदेश के विद्यालयों में एक खेल शिक्षक होना अनिवार्य है। उत्तर प्रदेश के 32022 स्कूल में अभी भी एक भी खेल शिक्षक नहीं हैं। माना जा रहा है कि प्रदेश में करीब 80 हजार युवा बीपीएड की डिग्री लेकर बैठे हुए हैं और खेल शिक्षक बनने का इंतजार कर रहे हैं। लेकिन सरकार उन्हें नौकरी देने को तैयार नही है। ऐसी दशा में हताश-परेशान ये होनहार बच्चे पकौड़े बेच रहे हैं, चाय बेच रहे हैं, मंदिरों में फूल बेच रहे हैं। हालांकि इन नवजवानों का सपना है कि वह स्कूल के बच्चों को अच्छा खिलाड़ी बनाएं।
ऐसी दशा में सबसे बड़ा सवाल है कि क्या भारत को ओलंपिक खेलों में मेडल पाने का सपना देखना चाहिए, जहां स्कूलों में खेल शिक्षक ही नहीं है। भारत का अब तक ओलम्पिक खेलों में प्रदर्शन निराशाजनक ही रहा है। 125 करोड़ से अधिक आबादी वाले एक ऐसे देश, जिसमें युवाओं की संख्या 50 करोड़ से अधिक हो, से कम-से-कम इतनी उम्मीद तो की ही जा सकती है, कि उसका नाम पदक-तालिका में यथासंभव ऊपर हो। लेकिन अनावश्यक राजनीतिक दखल, खेल शिक्षकों की कमी, ग्रामीण प्रतिभाओं की अनदेखी, अन्तर्राष्ट्रीय स्तर के आधुनिक खेल-सुविधाओं के अभाव इत्यादि कारणों से भारतीय खिलाड़ियों का प्रदर्शन बहुत ही निराशाजनक रहा है। रियो ओलंपिक में सिर्फ दो लड़कियां ही पदक लाने में सफल हो पायी थी। यदि ऐसा ही हाल रहा तो आगे भी कोई उम्मीद करना बेमानी ही है।