अनुसूचित जाति/जनजाति प्रमाण पत्र
अनुसूचित जनजाति भारत के विभिन्न राज्यों और संघ राज्य क्षेत्रों में पायी जाती है। स्वतंत्रता के पहले की अवधि में संविधान के अधीन सभी जनजातियों को ''अनुसूचित जनजाति'' के रूप में समूहबद्ध किया गया था। अनुसूचित जनजाति के रूप में विनिर्दिष्ट करने के लिए अपनाए गए मानदंडों में निम्नलिखित शामिल हैं: निश्चित भौगोलिक क्षेत्र में पारम्परिक रूप से निवास करना। विशिष्ट संस्कृति जिसमें जनजातिय जीवन के सभी पहलू अर्थात भाषा, रीति रिवाज, परम्परा, धर्म और अस्था, कला और शिल्प आदि शामिल हैं। आदिकालीन विशेषताएं जो व्यावसायिक तरीके, अर्थव्यवस्था आदि को दर्शाता है। शैक्षिक और प्रौद्योगिकीय आर्थिक विकास का अभाव। राज्य विशेष/संघ राज्य क्षेत्र विशेष संबंधी अनुसूचित जनजाति का विनिर्देशन संबंधित राज्य सरकार के साथ किया गया। इन आदेशों को बात में परिवर्तित किया जा सकता है यह संसद के अधिनियम द्वारा किया जाता है।
भारत के संविधान के अनुच्छेद 342 के अनुसार संबंधित राज्य सरकार के साथ परामर्श करने के पश्चात राष्ट्रपति में अब तक 9 आदेश लागू किए हैं जिनमें संबंधित राज्य और संघ राज्य क्षेत्रों के संबंध में अनुसूचित जाति को विनिर्दिष्ट किया गया है।
जनजाति प्रमाण पत्र क्या है
भारतीय संविधान में उल्लिखित विनिर्देशन के अनुसार जनजाति प्रमाण पत्र किसी के अनुसूचित जनजाति होने का प्रमाण है। सरकार ने अनुभव किया कि बाकी नागरिकों की तरह समान गति से उन्नति करने के लिए अनुसूचित जनजातियों को विशेष प्रोत्साहन और अवसरों की आवश्यकता है। इसके परिणाम स्वरूप, रक्षात्मक भेदभाव की भारतीय प्रणाली के भाग के रूप में इन श्रेणी के नागरिकों के विशेष लाभ की गारंटी दी गई है, जैसा कि विधायिका में और सरकारी सेवा में सीटों का आरक्षण स्कूलों और कॉलेजों में दाखिला के लिए कुछ अंश पूरे शुल्क की छूट, शैक्षिक संस्थाओं में कोटा, कुछ नौकरियों आदि के लिए आवेदन करने के लिय ऊपरी आयु सीमा में छूट देना। इन लाभों को लेने में समर्थ होने के लिए अनुसूचित जनजाति के नागरिक के पास वैध जनजाति प्रमाण पत्र का होना जरूरी है।
जनजाति प्रमाण पत्र के लिए आवेदन कैसे करें
राष्ट्रपति के अधिसूचित आदेशों में सूचीबद्ध जनजाति के लोग जनजाति प्रमाण पत्र प्राप्त करने के लिए आवेदन कर सकते हैं। कुछ राज्यों में जनजातीय विकास विभाग कुछ ऑनलाइन सुविधाएं मुहैया कराते हैं।