नई दिल्ली। राज्यसभा ने सामान्य वर्ग के गरीब वर्गों को सरकारी नौकरियों और शिक्षण संस्थाओं में 10 फीसद आरक्षण पर 07 के मुकाबले 165 मतों से मुहर लगा दी है। लोकसभा में 03 मतों के मुकाबले 323 मतों से बिल पारित के होने के बाद राज्यसभा ने भी बुधवार को सामान्य वर्ग के गरीबों के आरक्षण संबंधी 124वें संविधान संशोधन विधेयक को पारित कर दिया। यह संशोधन संविधान के अनुच्छेद 15 और 16 के तहत किया गया है और इसीलिए इसे राज्यों की विधानसभा से पारित कराने की जरूरत नहीं होगी। अब केवल राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद 10 फीसद आरक्षण की यह व्यवस्था लागू हो जाएगी।
आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों को सरकारी नौकरियों एवं शिक्षण संस्थाओं में 10 फीसदी आरक्षण देने के प्रावधान वाले संविधान संशोधन विधेयक पर राज्यसभा में जोरदार बहस हुई थी। सत्ता पक्ष और विपक्ष ने तर्कों के जरिए अपनी बात सदन के सामने रखा था। राज्यसभा ने आरक्षण संबंधी संविधान संबंधी इस बिल को पारित करने से पहले इसे सिलेक्ट कमिटी में भेजने की द्रमुक सांसद कनीमोरी के प्रस्ताव को भी 18 के मुकाबले 155 मतों से खारिज कर दिया। राज्यसभा में 10 घंटे तक बिल पर हुई चर्चा का जवाब देते हुए सामाजिक न्याय मंत्री थावरचंद गहलोत ने कहा कि सामान्य वर्ग के गरीबी लोगों को इसके जरिए सरकारी नौकरियों और शिक्षण में संस्थानों आरक्षण का लाभ मिलेगा। बिल को ऐतिहासिक बताते हुए उन्होंने कहा कि सरकार की इसको लेकर यह गंभीरता ही रही कि संविधान संशोधन के जरिये आरक्षण का यह प्रावधान किया जा रहा है। इसीलिए उम्मीद है कि सुप्रीम कोर्ट भी संविधान संशोधन की इस प्रक्रिया को मान्य करेगा। आर्थिक रुप से कमजोर तबकों का ख्याल रखने की पंडित जवाहर लाल नेहरू की संविधान सभा में कही गई बात का आनंद शर्मा की ओर से किए गए उल्लेख का जवाब देते हुए गहलोत ने कहा कि यह भारत की परंपरा रही है। अगड़ी जाति के हमारे नेताओं ने दलित-आदिवासी और पिछड़ों को आरक्षण दिया। इसी परंपरा को आगे बढ़ाते हुए पिछड़े समुदाय से होने के बावजूद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अगड़ी जाति के गरीबों के लिए आरक्षण किया है।
कांग्रेस की ओर से आनंद शर्मा ने चर्चा की शुरुआत करते हुए सवर्ण गरीबों को आरक्षण देने के बिल का समर्थन किया। हालांकि सरकार की अंतिम बेला में बिल लाने की पहल को पांच राज्यों के चुनाव में हार के बाद सरकार का अचानक लिया गया फैसला बताया। उन्होंने कहा कि 2014 में सब्जबाग दिखाते हुए तमाम वादे किए गए थे मगर इसमें कोई पूरा नहीं हुआ और पांच राज्यों के चुनाव में जनता ने इन्हें रास्ता दिखा दिया। इसी घबराहट में सत्ता से बाहर होने के डिपारचर लाउंज में खड़ी सरकार ने यह कदम उठाया है। शर्मा ने कहा कि कांग्रेस बिल का समर्थन इसलिए कर रही कि पार्टी ने भी अपने चुनाव घोषणापत्र में इसका वादा किया था। बिल में आरक्षण के लिए शर्तो की चर्चा करते हुए शर्मा ने कहा कि 8 लाख रुपये तक की आय और 5 एकड़ जमीन के साथ जो मानक तय किए हैं उसमें करीब 98 फीसद आबादी आएगी। इसका अर्थ यह होगा कि इतनी आबादी को 10 फीसद कोटे में ही संघर्ष करना होगा।
सपा के रामगोपाल यादव ने सवर्ण गरीबों के आरक्षण का समर्थन करते हुए मांग उठाई कि ओबीसी का आरक्षण उसकी जनसंख्या के हिसाब से बढ़ाते हुए 54 फीसद किया जाना चाहिए। उन्होंने मुसलमानों के लिए भी इसी आधार पर आरक्षण की मांग उठाई।
बसपा के सतीश चंद्र मिश्र ने अगड़ी जाति के गरीबों के आरक्षण का समर्थन किया मगर एससी व एसटी को प्रमोशन में आरक्षण देने संबंधी बिल पारित नहीं करने को लेकर मोदी सरकार पर सवाल उठाए। खासतौर पर केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान पर मिश्र ने इसको लेकर निशाना साधा और कहा कि आरक्षण का सरकार का यह छक्का बाउंड्री पार करने वाला नहीं है।
आरक्षण बिल पर राज्यसभा में चर्चा के दौरान कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल ने कहा कि मंडल कमीशन में आर्थिक आधार पर 10 फीसद आरक्षण की व्यवस्था की गई थी। लेकिन सुप्रीम कोर्ट की 9 जजों की बेंच ने उसे असंवैधानिक करार दिया था। ऐसे में आप संविधान में संशोधन कैसे कर सकते हैं।