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आत्मरक्षा या निजी रक्षा का अधिकार

आत्मरक्षा या निजी रक्षा का अधिकार

हर व्यक्ति को आत्मरक्षा या निजी रक्षा का अधिकार 

भारतीय दण्ड संहिता की धारा 96 से लेकर 106 तक की धारा में सभी व्यक्तियों को आत्मरक्षा का अधिकार दिया गया है । व्यक्ति स्वयं की रक्षा किसी भी हमले या अंकुश या स्वयं की संपत्ति की चोरी, डकैती, शरारत व अपराधिक अतिचार के खिलाफ कर सकता है।

आत्मरक्षा अधिकार के सिद्धांत

1-आत्मरक्षा का अधिकार रक्षा या आत्मसुरक्षा का अधिकार है । इसका मतलब प्रतिरोध या सजा नहीं है।

2-आत्मरक्षा के दौरान चोट जितनी जरूरी हों उससे ज्यादा नहीं होनी चाहिए ।

3-ये अधिकार सिर्फ तभी तक ही उपलब्ध हैं जब तक कि शरीर अथवा  संपत्ति को खतरे की उचित आशंका हो या जब कि खतरा सामने हो या होने वाला हो।

आत्मरक्षा को साबित करने की जिम्मेदारी अभियुक्त की होती है

1-आपराधिक मुकदमों में अभियुक्त को आत्मरक्षा के अधिकार के लिए निवेदन करना चाहिए।

2-ये जिम्मेदारी अभियुक्त की होती है कि वह तथ्यों व परिस्थितियों के द्वारा ये साबित करे कि उसका काम आत्मरक्षा में किया गया है।

3-आत्मरक्षा के अधिकार का प्रश्न केवल अभियोग द्वारा तथ्यों व परिस्थितियों के साबित करने के बाद ही उठाया जा सकता है ।

4-यदि अभियुक्त आत्मरक्षा के अधिकार की गुहार नहीं कर पाता है, तब भी न्यायालय को ये अधिकार है कि अगर उसे उचित सबूत मिले तो वह इस बात पर गौर करे। यदि उपलब्ध साक्ष्यों से ये न्याय संगत लगे तब ये निवेदन सर्वप्रथम अपील में भी उठाया जा सकता है ।

5-अभियुक्त पर घाव के निशान आत्मरक्षा के दावे को साबित करने के लिए मददगार साबित हो सकते हैं ।

आत्मरक्षा का अधिकार कब प्राप्त नहीं

1- यदि लोक सेवक या सरकारी कर्मचारी कोई कार्य करता है, जिससे मृत्यु या नुकसान की आशंका युक्ति युक्त रुप से नहीं होती है । और वह सद्भावनापूर्वक अपने पद पर काम करता है ।

2-कोई व्यक्ति जो लोक सेवक के निर्देश पर कोई कार्य करे या करने की कोशिश करे। उदाहरण- कोर्ट के लाठीचार्ज के आदेश, पुलिस की कार्रवाई।

3-यदि कोई कार्य उचित देखभाल व सावधानी से किया जाए तब उसे सद्भावनापूर्वक किया गया माना जायेगा।

4-ऐसे समय में जब सुरक्षा के लिए उचित प्राधिकारियों की सहायता प्राप्त करने के लिए समय हो।

5-स्वयं या संपत्ति की रक्षा के लिए उतने ही बल के प्रयोग का अधिकार है, जितना स्वयं की रक्षा के लिए जरूरी हो।

6-किसी विकृतचित्त व्यक्ति(अपरिपक्व समझ के शिशु, पागल व्यक्ति , शराबी) के खिलाफ आत्मरक्षा का अधिकार है।

7-किसी आक्रमण करने वाले को जान से मारा जा सकता है, अगर उस हमलावर से मौत, बलात्कार, अप्राकृतिक कार्य, अपहरण आदि की आशंका हो।

8-सुप्रीम कोर्ट ने आत्मरक्षा के अधिकार से जुडे मामले में अपने निर्णय में कहा था कि कानून का पालन करने वाले लोगों को कायर बनकर रहने की जरूरत नहीं है, खासकर तब, जबकि आपके ऊपर गैरकानूनी तरीके से हमला किया जाए।

संपत्ति की रक्षा का अधिकार

1- संपत्ति के वास्तविक मालिक को अपना कब्जा बनाए रखने का अधिकार है ।

2-संपत्ति पर जबरदस्ती कब्जा जमाए रखने वाला व्यक्ति कब्जे को बनाए रखने की प्रार्थना नहीं कर सकता है ।

3-कोई बाहरी व्यक्ति अचानक खाली पड़ी जमीन पर कब्जा करके वास्तविक मालिक को बेदखल नहीं कर सकता है ।

4-जमीन के वास्तविक मालिक को अधिकार है कि वो कानूनी तरीके से बाहरी व्यक्ति को अपनी जमीन में ना घुसने दे।

5-बाहरी व्यक्ति को शारीरिक हमले से आत्मरक्षा का अधिकार तभी होगा जब वो संपत्ति का यह अधिकार लंबे समय से इस्तेमाल कर रहा हो।

6-अगर वास्तविक मालिक बलपूर्वक अचानक जमीन पर कब्जा करने वाले बाहरी व्यक्ति से बलपूर्वक अपनी जमीन को प्राप्त करेगा , तो वह किसी अपराध का दोषी नहीं होगा ।

7-यदि कोई बाहरी व्यक्ति असली मालिक को जानते हुए भी गलती से किसी जमीन के टुकड़े को लंबे समय तक इस्तेमाल करता है तो असली मालिक कानून को अपने हाथ में नहीं ले सकता है। उसे कानूनी उपचारों की मदद लेनी होगी।

8-आईपीसी की धारा 103 के मुताबिक लूट, रात्रि में घर में सेंध,आगजनी,चोरी आदि की स्थिति में अगर जान का खतरा हो तो आक्रमणकारी की हत्या करना न्याय संगत होगा।

इसलिए आपके ऊपर जब भी गैरकानूनी तरीके से हमला किया जाए, आप निडर होकर अपनी आत्मरक्षा करें।

संपत्ति की निजी प्रतिरक्षा का अधिकार

1-संपत्ति की निजी प्रतिरक्षा का अधिकार तब शुरु होता है , जब संपत्ति के संकट की युक्तियुक्त आशंका शुरु होती है ।

2-संपत्ति का निजी प्रतिरक्षा का अधिकार चोरी के खिलाफ अपराधी के संपत्ति सहित पहुंच से बाहर हो जाने तक होती है अथवा लोक प्राधिकारियों की सहायता प्राप्त कर लेने तक बनी रहती है ।

3-संपत्ति का निजी प्रतिरक्षा अधिकार लूट के विरुद्ध तब तक बना रहता है , जब तक कि अपराधी किसी व्यक्ति की मृत्यु या उसे नुकसान पहुंचाने तक विरोध करता है  या फिर कोशिश करता रहता है । अथवा जब तक तुरंत मौत का या निजी विरोध का भय बना रहता है ।

4-संपत्ति की प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार अत्याचार के खिलाफ तब तक बना रहता है । जब तक कि अपराधी अत्याचार करता रहता है ।

5-संपत्ति का निजी प्रतिरक्षा का अधिकार रात में घर में सेंध लगाने के खिलाफ तब तक बना रहता है । जब तक  सेंध से शुरु हुआ गृह अत्याचार जारी रहता है

नागरिक का मौलिक कर्तव्य

(क) संविधान का पालन करें और उसके आदर्शों, राष्ट्र ध्वज और राष्ट्र्गान का आदर करें। 

(ख) स्वतंत्रता के लिए हमारे राष्ट्रीय आन्दोलन प्रेरित करने वाले उच्च आदर्शो को हृदय में संजोए रखें व उनका पालन करें।

(ग) भारत की प्रभुता एकता व अखंडता की रक्षा करें और उसे अक्षुण्ण बनाये रखें। 

(घ) देश की रक्षा करें और आवाह्न किए जाने पर राष्ट् की सेवा करें। 

(ङ) भारत के सभी लोग समरसता और सम्मान एवं भ्रातृत्व की भावना का निर्माण करें जो धर्म, भाषा और प्रदेश या वर्ग के भेदभाव पर आधारित न हों, उन सभी प्रथाओं का त्याग करें जो महिलाओं के सम्मान के विरुद्ध हों।

(च) हमारी सामाजिक संस्कृति की गौरवशाली परम्परा का महत्त्व समझें और उसका परिरक्षण करें। 

(छ) प्राकृतिक पर्यावरण जिसके अंतर्गत वन, झील,नदी वन्य प्राणी आदि आते हैं की रक्षा व संवर्धन करें तथा प्राणी मात्र के प्रति दयाभाव रखें।

(ज) वैज्ञानिक दृष्टिकोण मानवतावाद व ज्ञानार्जन तथा सुधार की भावना का विकास करें । 

(झ) सार्वजनिक सम्पत्ति को सुरक्षित रखें व हिंसा से दूर रहें। 

(ञ) व्यक्तिगत और सामूहिक गतिविधियों के सभी क्षेत्रों में सतत उत्कर्ष की ओर बढ़ने का प्रयास करें, जिससे राष्ट्र प्रगति करते हुए प्रयात्न और उपलब्धि की नई ऊँचाइयों को छू ले।

(ट) यदि आप माता-पिता या संरक्षक हैं तो 6 वर्ष से 14 वर्ष आयु वाले अपने या प्रतिपाल्य (यथास्थिति) बच्चे को शिक्षा के अवसर प्रदान करें।

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