Main Menu

झूठी शिकायत के खिलाफ क्या करें

झूठी शिकायत के खिलाफ क्या करें

आप सबसे पहले झूठी शिकायत देने वाले शिकायतकर्ता के खिलाफ एक काउंटर शिकायत सम्बंधित या नजदीकी पुलिस स्टेशन में दें या उनके उच्चाधिकारी को दें। शिकायत दर्ज कराने के लिए किसी सबूत को साथ देने की जरूरत नहीं होती। यह जांच अधिकारी की जिम्मेदारी होती है कि वो शिकायत की जांच करे, गलत पाये जाने पर शिकायत बंद कर दे या फिर सही पाये जाने पर सम्बंधित धारा के तहत केस दर्ज करें।     

  • आप झूठे शिकायतकर्ता के खिलाफ एक निजी शिकायत, क्षेत्र के मजिस्ट्रेट को सीआरपीसी की धारा 190 (ए) के तहत दे सकते हैं। जो आपकी शिकायत पर धारा 200 के तहत कारर्वाई करेंगे। 
  • सीआरपीसी की धारा 156 (3) के तहत मजिस्ट्रेट को शिकायत देने के बाद पुलिस को प्राथमिकी दर्ज करने के लिए निवेदन किया जा सकता है।       
  • यदि झूठी शिकायत कोर्ट में जाती है तो आप कोर्ट से "नोटिस ऑफ़ एक्वाजेशन" की मांग कर उस झूठी शिकायत के खिलाफ लड़ने की इच्छा जताएं। जैसे ही आप लड़ने की बात रखेंगे तो अगली पार्टी को एक निश्चित समय सीमा के भीतर आपके खिलाफ सबूत एवं गवाह पेश करने होंगे। उस सबूत एवं गवाह को आप कोर्ट में क्रॉस परीक्षण कर सकते हैं एवं अपने पक्ष को रखते हुए सच्चाई कोर्ट के सामने ला सकते हैं।  
  • आप झूठे शिकायतकर्ता के खिलाफ विभिन्न धाराओं के तहत केस दर्ज कराने कि प्रक्रिया शुरू करें। और अपने साथ हुई ज्यादती एवं मानसिक परेशानी व मानहानि का मुआवजा मांगें।  
  • धारा 182 के तहत सरकारी कर्मचारी को झूठी सूचना या जानकारी देने पर सजा का प्रावधान है। केस की जांच में साबित हो जाता है कि शिकायतकर्ता द्वारा झूठी शिकायत दी गई तो धारा 182 के तहत उसके खिलाफ कार्रवाई होती है। इसमें 6 महीने की सजा और जुर्माना भी है। 
  • जबकि धारा 211 के तहत कोर्ट में झूठी गवाही या गुमराह करने पर उसके खिलाफ कोर्ट के आदेश पर कार्रवाई होती है। जिसकी सजा 7 साल से अधिक है।
  • यदि कोई व्यक्ति कोर्ट में झूठी गवाही देता है और कोर्ट इस बात से संतुष्ट हो जाए कि गवाह ने झूठी गवाही दी है तो उसके खिलाफ कार्रवाई का आदेश दे सकता है। कोर्ट को यह अधिकार है कि वह ऐसे मामले में सीआरपीसी की धारा-340 के तहत समरी प्रोसिडिंग चलाकर वैसे गवाह के खिलाफ कार्रवाई का आदेश दे सकता है। इस दौरान जुर्माना लगाया जा सकता है और जेल भी भेजा जा सकता है।

आपराधिक मामलों में झूठी शिकायत पर क्या करें 

  • यदि आपके खिलाफ मारपीट, चोरी, बलात्कार अथवा अन्य किसी प्रकार का षडयंत्र  रचकर पुलिस थाने में एफआईआर दर्ज करा दी जाती है, तो आप हाईकोर्ट में धारा 482 सीआरपीसी के तहत प्रार्थना पत्र दायर कर अपने खिलाफ हो रही पुलिस कार्यवाही को तुरंत रुकवा सकते हैं।
  • इसके अलावा हाईकोर्ट आपका प्रार्थना पत्र देखकर संबंधित जांच अधिकारी को जांच करने के लिए आवश्यक निर्देश दे सकता है।
  • इस तरह के मामलों में जब तक हाईकोर्ट में धारा 482 सीआरपीसी के तहत मामला चलता रहेगा, पुलिस आपके खिलाफ कोई कानूनी कार्यवाही नहीं कर सकेगी।
  • यदि आपके खिलाफ वारंट जारी है तो वह भी तुरंत प्रभाव से हाईकोर्ट के आदेश आने तक के लिए रुक जाएगा। 

नागरिक का मौलिक कर्तव्य

(क) संविधान का पालन करें और उसके आदर्शों, राष्ट्र ध्वज और राष्ट्र्गान का आदर करें। 

(ख) स्वतंत्रता के लिए हमारे राष्ट्रीय आन्दोलन प्रेरित करने वाले उच्च आदर्शो को हृदय में संजोए रखें व उनका पालन करें।

(ग) भारत की प्रभुता एकता व अखंडता की रक्षा करें और उसे अक्षुण्ण बनाये रखें। 

(घ) देश की रक्षा करें और आवाह्न किए जाने पर राष्ट् की सेवा करें। 

(ङ) भारत के सभी लोग समरसता और सम्मान एवं भ्रातृत्व की भावना का निर्माण करें जो धर्म, भाषा और प्रदेश या वर्ग के भेदभाव पर आधारित न हों, उन सभी प्रथाओं का त्याग करें जो महिलाओं के सम्मान के विरुद्ध हों।

(च) हमारी सामाजिक संस्कृति की गौरवशाली परम्परा का महत्त्व समझें और उसका परिरक्षण करें। 

(छ) प्राकृतिक पर्यावरण जिसके अंतर्गत वन, झील,नदी वन्य प्राणी आदि आते हैं की रक्षा व संवर्धन करें तथा प्राणी मात्र के प्रति दयाभाव रखें।

(ज) वैज्ञानिक दृष्टिकोण मानवतावाद व ज्ञानार्जन तथा सुधार की भावना का विकास करें । 

(झ) सार्वजनिक सम्पत्ति को सुरक्षित रखें व हिंसा से दूर रहें। 

(ञ) व्यक्तिगत और सामूहिक गतिविधियों के सभी क्षेत्रों में सतत उत्कर्ष की ओर बढ़ने का प्रयास करें, जिससे राष्ट्र प्रगति करते हुए प्रयात्न और उपलब्धि की नई ऊँचाइयों को छू ले।

(ट) यदि आप माता-पिता या संरक्षक हैं तो 6 वर्ष से 14 वर्ष आयु वाले अपने या प्रतिपाल्य (यथास्थिति) बच्चे को शिक्षा के अवसर प्रदान करें।

बंदी (कैदी) का अधिकार