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आपराधिक और दीवानी मामले में अंतर

आपराधिक और दीवानी मामले में अंतर

फौजदारी या आपराधिक मामले

  • फौजदारी या आपराधिक मामलों में शिकायतकर्ता का उद्देश्य अपराधी को सजा दिलवाना होता है ।
  • अपराध का शिकार होने वाला या अपराध जानकारी रखने वाला व्यक्ति शिकायत दर्ज करा सकता है । मजिस्ट्रेट जानकारी या शक के आधार पर खुद भी आपराधिक मामला शुरु कर सकता है ।
  • मजिस्ट्रेट झूठी शिकायत करने वाले पर जुर्माना कर सकता है ।
  • किसी व्यक्ति पर एक ही अपराध के लिए दोबारा मुकदमा नहीं चलाया जा सकता है , लेकिन अगर अभियुक्त को आरोप निर्धारित करने से पहले छोड़ दिया गया हो या अभियुक्त के पिछले कार्य से भविष्य में कोई दूसरा अपराध हो गया हो तो उस पर मुकदमा चलाया जा सकता है ।
  • फौजदारी या आपराधिक मामले में शिकायतकर्ता ना तो मामला वापस ले सकता है और ना ही समझौता कर सकता है।
  • शिकायत दर्ज होने के बाद अदालत दोनों पक्षों की सुनवाई करता है । अगर अभियुक्त दोषी पाया जाता है तो अदालत उसे सजा सुनाती है ।हालांकि मामूली मामलों में अदालत आरोप नहीं निर्धारित करती है, लेकिन पक्षों औऱ गवाहों की बात सुनने के बाद फैसला सुना देती है ।
  • सजा पाया हुआ व्यक्ति ऊंची अदालत में अपील कर सकता है ,लेकिन उन्हीं मामलों में जिनमें संबद्ध कानून या प्रक्रिया में अपील का प्रावधान हो।
  • मुकदमे को दौरान गवाह के झूठ बोलने पर अदालत गवाह को सजा भी दे सकती है ।

सिविल या दीवानी मामले

  • सिविल या दीवानी मामलों में शिकायतकर्ता का उद्देश्य दूसरे व्यक्ति से अपना दावा हासिल करना होता है ।
  • सिविल अदालत की सबसे छोटी इकाई ग्राम पंचायतें होती हैं । इनमें रुपए पैसे के छोट-छोटे मामले निपटाए जाते हैं ।
  • किसी वादी या आवेदनकर्ता के अर्जीदावा या वाद दायर करने के साथ ही सिविल मुकदमा शुरु हो जाता है ।
  • अर्जीदावा के बाद सम्मन जारी किए जाते हैं ।
  • वादी या आवेदक और बचाव पक्ष या प्रतिवादी लिखित बयान तथा मुद्दे दर्ज कराते हैं ।
  • पेश किए गये तथ्यों के आधार पर दोनों पक्ष की सुनवाई होती है , जिस पर अदालत फैसला सुनाती है ।
  • फैसला सुनाने के बाद अदालत अंत में आज्ञप्ति या डिक्री जारी करती है , जिसमें अदालत के आदेश तथा संबद्ध पक्षों की पूर्ति या रिलीफ का ब्यौरा होता है ।
  • अर्जीदावा या आवेदन में सभी दावे शामिल किए जाने चाहिए क्योंकि एक ही उद्देश्य से संबंधित ऐसे नए दावों की पूर्ति के लिए व्यक्ति दूसरी बार आवेदन नहीं कर सकता है । जिनके बारे में पहले आवेदन के समय दावा नहीं किया गया हो।
  • मामले से संबंधित पक्षों को सुनवाई के दौरान अदालत में उपस्थित रहना चाहिए । ऐसा नहीं होने पर अदालत मामले को रद्द कर सकती है या डिक्री भी दे सकती है । अगर अनुपस्थिति के वाजिब कारण होंगे तो दोबारा सुनवाई भी हो सकती है।
  • मामले से संबंधित पक्ष कोई समझौता कर सकते हैं और अदालत से इसके लिए डिक्री जारी करने का अनुरोध कर सकते हैं ।
  • निचली अदालत के फैसले के खिलाफ आप ऊंची अदालत में अपील कर सकते हैं । हालांकि अपीलीय अदालत में सुनवाई के दौरान आपस में समझौता भी कर सकते हैं ।
  • मामले में नुकसान उठाने वाले पक्ष की पुनर्विचार याचिका पर अदालत अपनी ही डिक्री या आदेश पर पुनर्विचार कर सकता है। औऱ डिक्री या आदेश को संशोधित कर सकता है ।
  • किसी मुकदमे के पूरी तरह खत्म हो जाने पर कोई पक्ष उन्हीं मुद्दों को लेकर दोबारा मुकदमा दायर नहीं कर सकता है ।
  • आपराधिक मामलों के विपरीत , सिविल मुकदमों में जीतने वाले पक्ष को आमतौर पर मुकदमें में हुए खर्च का मुआवजा दिया जाता है। इस खर्च में -सम्मन आदि के लिए अदालत को भुगतान , स्टाम्प की कीमत, आवेदन करने और मुकदमे के दौरन हुए खर्च शामिल होते हैं ।
  • अगर जीतने वाले पक्ष को डिक्री के मुताबिक लाभ नहीं मिलता है तो उसे इन लाभों के लिए फिर उसी अदालत में आवेदन करना होता है । यह डिक्री पास होने के बारह साल के अंदर दिया जाना चाहिए।

नागरिक का मौलिक कर्तव्य

(क) संविधान का पालन करें और उसके आदर्शों, राष्ट्र ध्वज और राष्ट्र्गान का आदर करें। 

(ख) स्वतंत्रता के लिए हमारे राष्ट्रीय आन्दोलन प्रेरित करने वाले उच्च आदर्शो को हृदय में संजोए रखें व उनका पालन करें।

(ग) भारत की प्रभुता एकता व अखंडता की रक्षा करें और उसे अक्षुण्ण बनाये रखें। 

(घ) देश की रक्षा करें और आवाह्न किए जाने पर राष्ट् की सेवा करें। 

(ङ) भारत के सभी लोग समरसता और सम्मान एवं भ्रातृत्व की भावना का निर्माण करें जो धर्म, भाषा और प्रदेश या वर्ग के भेदभाव पर आधारित न हों, उन सभी प्रथाओं का त्याग करें जो महिलाओं के सम्मान के विरुद्ध हों।

(च) हमारी सामाजिक संस्कृति की गौरवशाली परम्परा का महत्त्व समझें और उसका परिरक्षण करें। 

(छ) प्राकृतिक पर्यावरण जिसके अंतर्गत वन, झील,नदी वन्य प्राणी आदि आते हैं की रक्षा व संवर्धन करें तथा प्राणी मात्र के प्रति दयाभाव रखें।

(ज) वैज्ञानिक दृष्टिकोण मानवतावाद व ज्ञानार्जन तथा सुधार की भावना का विकास करें । 

(झ) सार्वजनिक सम्पत्ति को सुरक्षित रखें व हिंसा से दूर रहें। 

(ञ) व्यक्तिगत और सामूहिक गतिविधियों के सभी क्षेत्रों में सतत उत्कर्ष की ओर बढ़ने का प्रयास करें, जिससे राष्ट्र प्रगति करते हुए प्रयात्न और उपलब्धि की नई ऊँचाइयों को छू ले।

(ट) यदि आप माता-पिता या संरक्षक हैं तो 6 वर्ष से 14 वर्ष आयु वाले अपने या प्रतिपाल्य (यथास्थिति) बच्चे को शिक्षा के अवसर प्रदान करें।

बंदी (कैदी) का अधिकार