आपने CBI के बारे में तो अवश्य सुना होगा। देश में समय-समय पर संदिग्ध मौतों के मामलों की जांच के लिए सीबीआई जांच की मांग की जाती रही है, जैसे अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत के पिता ने अपने पुत्र की मौत की जांच सीबीआई जांच की मांग की। हालांकि देखा जाए तो प्रायः ऐसे मामले प्रभावशाली लोगों से संबंधित होते हैं। जबकि कई लोगों को यह पता ही नहीं होता है कि सीबीआई क्या होती है। और उसके कार्य क्या होते हैं। ,,,,चलिए हम आपको बताते हैं,,,,
आपने सीमा सुरक्षा बल के बारे में तो सुना ही होगा। संक्षेप में इसे बीएसएफ भी कहा जाता है। इस बल के वीर जवान हर दिन सीमा पर पाकिस्तान की घटिया कारतूतों का मुहंतोड़ जवाब देते रहते हैं। और पाकिस्तान की सहायता से नियंत्रण रेखा पार करने वाले आतंकियों को भी मौत की नींद सुलाते रहते हैं, लेकिन फिर भी पाकिस्तान अपनी शैतानी से बाज नहीं आता है।,,,,चलिए बीएसएफ के बारे में आपको विस्तार से बताते हैं,,,,
देश के सबसे शक्तिशाली बल, राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड यानि एनएसजी का नाम तो आपने सुना ही होगा। देश में जब भी आतंकवाद और विमान अपहरण आदि जैसी गंभीर घटनाएं घटित होती हैं तो जवाबी कार्रवाई करने तथा बंधकों को छुड़ाने के अभियानों के लिए एनएसजी को ही तैनात किया जाता है, क्योंकि इन्हें ऐसे कठिन कार्यों को करने की विशेषज्ञता प्राप्त है। इसके अतिरिक्त यह बल वीआईपी सुरक्षा तथा महत्वपूर्ण अवसरों पर सुरक्षा प्रदान करने के लिए कार्य करता है। यह विशेष केंद्रीय पुलिस बल के अंतर्गत आता है।,,,,,,चलिए एनएसजी के बारे में आपको विस्तार से बताते हैं,,,,,
आप लोग किसी घटना या विवाद को लेकर कभी न कभी पुलिस स्टेशन या थाने में अवश्य गए होंगे और SHO यानि पुलिस स्टेशन के प्रभारी अधिकारी से सहायता मांगी होगी। लेकिन अभी भी बहुत से लोग यह नहीं जानते हैं कि जिस SHO के पास वह न्याय की आशा में गए हैं वह कौन है और जनता के प्रति उसके कर्तव्य क्या हैं। चलिए हम आपको विस्तार से बताते हैं कि SHO कौन होता है और उसके कार्य क्या होते हैं।
वो कहावत तो अवश्य सुनी ही होगी, देखो सौ चूहे खाकर बिल्ली हज करने को चली। आज हमारे देश के नेताओं का कुछ ऐसा ही हाल है। जिन सांसदों ने पूर्व मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई के राज्यसभा में मनोनयन के विरोध में हंगामा किया। शेम-शेम के नारे लगाए और सदन से वॉकआउट किया। उन्हीं 542 सांसदों में से लगभग 233 यानि 43 फीसदी सांसदों के खिलाफ न्यायालयों में आपराधिक मुकदमे लंबित हैं। ,,,, चलिए हम आपको बताते हैं विरोध की पूरी सच्चाई,,,
योगी आदित्यनाथ की सरकार ने इसके लिए 'उत्तर प्रदेश लोक तथा निजी सम्पत्ति क्षति वसूली अध्यादेश 2020' पास कर दिया है। इसके तहत आंदोलनों और प्रदर्शनों के दौरान सार्वजनिक या निजी संपत्ति को नुकसान पहुंचाने पर दोषियों से वसूली भी होगी और उनके पोस्टर भी लगाए जाएंगे। इसके लिए उत्तर प्रदेश की योगी सरकार संपत्ति क्षय दावा अधिकरणों का गठन करेगी।
हमारी संसद और विधानसभाओं में आपराधिक तत्वों का चुना जाना, देश का दुर्भाग्य है। राजनीति में आपराधिक तत्वों का वर्चस्व बढ़ना कैंसर की तरह है, जिसका इलाज होना जरूरी है। इस कैंसररूपी महामारी से मुक्ति मिलने पर ही हमारा लोकतंत्र पवित्र एवं सशक्त बन सकेगा। अपराधी एवं दागी नेताओं को लेकर सर्वोच्च न्यायालय का ताजा फैसला भारतीय लोकतंत्र के रिसते हुए जख्मों पर मरहम लगाने जैसा है।
गौतमबुद्ध नगर जिले में जांच में खुलासा हुआ है कि थानों में 2 होमगार्डों की ड्यूटी लगाकर 10 होम गार्डों का वेतन निकाल लिया जाता था। इसके बाद विभिन्न थानाध्यक्षों के फर्जी हस्ताक्षर व मुहर के सहारे बैंक से दैनिक भत्ता निकाल लिया जाता था।
भारतीय संविधान में या फिर संसद के द्वारा पारित किसी भी अन्य विधि में लाभ के पद को कहीं भी परिभाषित नहीं किया गया है। लेकिन फिर भी लाभ के पद के बारे में संविधान में उल्लेख अवश्य किया गया है।
नरेंद्र मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में भ्रष्ट अधिकारियों के खिलाफ हो रही कार्रवाई से जनता में एक बार फिर उम्मीद जगी है। और ऐसा लग रहा है कि शायद भ्रष्ट व्यवस्था में कुछ न कुछ सुधार अवश्य होगा।
क्या मंत्रियों और नेताओं की गाड़ी से लाल बत्ती व हूटर हटवाने से वीआईपी कल्चर खत्म हो गया है? उत्तर है नहीं,,,, बत्ती चली गयी, लेकिन बल नहीं गया। हमारे देश में नेता चुनाव जीतते ही जनता के सेवक से वीआईआईपी हो जाते हैं। राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, मंत्री, मुख्यमंत्री, सांसद, विधायक और पार्षद आदि का पद ग्रहण करते ही पुलिस और कमांडो की सुरक्षा में गाड़ियों के कारवां के बीच चलने लगते हैं।
दिल्ली में हर वर्ष सर्दी शुरु होते ही वायु प्रदूषण को लेकर हाहाकार मचा जाता है। इस बार भी हेल्थ इमरजेंसी जैसे हालात हो गए हैं। वहीं इस समस्या का ठोस निदान करने की बजाय केंद्र और दिल्ली सरकार चुनावी मोड में हैं। एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप का दौर शुरु कर दिया है। और वायु प्रदूषण का सारा ठीकरा पराली जलाने वाले पंजाब और हरियाणा के किसानों के सिर पर फोड़ दिया है।
पुलिस बल राज्य द्वारा अधिकार प्राप्त व्यक्तियों का एक निकाय है, जो राज्य के द्वारा बनाए गए कानूनों को लागू करने, संपत्ति की रक्षा और नागरिक अव्यवस्था को सीमित रखने का कार्य करता है। पुलिस को प्रदान की गई शक्तियों में बल का वैध उपयोग करना भी शामिल है।
अधिवक्ता वह होता है जिसको कोर्ट में किसी अन्य व्यक्ति की तरफ से प्रतिपादन करने या दलीलों को रखने का अधिकार प्राप्त हो।
हमारे देश में विधायक चुनने की परपंरा इसलिए शुरू की गई थी कि जनता द्वारा निर्वाचित विधायक अपने-अपने क्षेत्र के विकास एवं समस्याओं को विशेष प्राथमिकता देंगे और वहां की जनता की सेवा करेंगे, लेकिन जमीनी सच्चाई कुछ ही है। आजकल विधायक बनना तो स्टेटस सिंबल बन गया है। विधायकों में अब जनसेवा की भावना तो दिखाई ही नहीं देती है। विधानसभा सदस्य बनने के बाद विधायक जनता की बजाय अपने परिवार की सेवा में जुट जाते हैं और रातों-रात खाकपति से करोड़पति बन जाते हैं। और कारों के काफिले और कमांडो की सुरक्षा में घूमने लगते हैं। वहीं उनको चुनने वाली जनता या कहें उनका मालिक उन्हें देखकर हैरान परेशान ताकता रह जाता है कि आखिर यह कैसा लोकतंत्र है। जिसमें रातों-रात नौकर मालिक हो जाता है और मालिक नौकर हो जाता है।
हमारे देश की जनता 'लोकसभा चुनाव' के जरिए अपना सांसद चुनती है। इन सांसदों की सहमति से ही देश के लिए नए कानून बनाए जाते हैं और पुराने कानूनों में न्यायोचित संशोधन किया जाता है। इसके साथ ही ये सांसद देश के विकास के लिए योजनाएं एवं देश के नागरिकों की तरक्की व रोजगार के लिए प्रबंधन भी करते हैं। इसीलिए कहा जाता है कि संसद में देश का भविष्य तय किया जाता है। यानी सांसद देश का भाग्य विधाता होता है। लेकिन सच में क्या ऐसा है ? शायद नहीं ! लाखों रुपए वेतन-भत्ते और पांच करोड़ रुपए सांसद निधि पाने वाले हमारे भाग्य विधाता सांसद देश के नागरिकों का भाग्य बदलने की बजाय अपना और अपने परिवार का भाग्य बदलने में जुटे हुए हैं। वह रातों-रात खाकपति से करोड़पति बन रहे हैं। वहीं उनको चुनने वाली जनता उन्हें देखकर हैरान और परेशान है कि आखिर इनकी मनमानी कब रुकेगी?
हमारे देश में यदि कोई नेता एक दिन के लिए भी विधानसभा सदस्य बन जाता है तो वह आजीवन पेंशन और भत्तों का अधिकारी हो जाता है,,,, और उसके या उसके परिवार के लिए जीवन भर के लिए पेंशन और भत्ते की व्यवस्था पक्की हो जाती है। ऐसा क्यों...
जिला कलेक्टर या जिला मजिस्ट्रेट जिले का मुख्य कार्यकारी, प्रशासनिक और राजस्व अधिकारी होने के साथ ही कल्याण और नियोजित विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। और जिले में कार्य कर रहीं विभिन्न सरकारी एजेंसियों के मध्य समन्वय स्थापित करता है।
हमारे देश में यदि कोई भी नेता एक दिन के लिए भी सांसद बन जाता है तो उसे संविधान के अनुच्छेद 106 के तहत भारत सरकार की ओर से पेंशन मिलनी शुरु हो जाती है। इतना ही नहीं, वह जितनी बार सांसद बनता है उतनी बार उसकी पेंशन और पेंशन की संख्या में बढ़ोतरी होती जाती है। आखिर क्यों !
उत्तर प्रदेश की जनता की शिकायत के समाधान के लिए स्थापित जनसुनवाई पोर्टल को अधिकारियों ने मजाक बनाकर रख दिया है। अधिकारी समस्या का निस्तारण करने की बजाय बिना जांच और कार्यवाही के झूठी रिपोर्ट लगाकर इस व्यवस्था का मजाक उड़ा रहे हैं। और सरकार के सामने अपनी पीठ थपथपा रहे हैं।
हर व्यक्ति को आत्मरक्षा या निजी रक्षा का अधिकार
भारतीय दण्ड संहिता की धारा 96 से लेकर 106 तक की धारा में सभी व्यक्तियों को आत्मरक्षा का अधिकार दिया गया है । व्यक्ति स्वयं की रक्षा किसी भी हमले या अंकुश या स्वयं की संपत्ति की चोरी, डकैती, शरारत व अपराधिक अतिचार के खिलाफ कर सकता है।
आत्मरक्षा अधिकार के सिद्धांत
1-आत्मरक्षा का अधिकार रक्षा या आत्मसुरक्षा का अधिकार है । इसका मतलब प्रतिरोध या सजा नहीं है।
2-आत्मरक्षा के दौरान चोट जितनी जरूरी हों उससे ज्यादा नहीं होनी चाहिए ।
3-ये अधिकार सिर्फ तभी तक ही उपलब्ध हैं जब तक कि शरीर अथवा संपत्ति को खतरे की उचित आशंका हो या जब कि खतरा सामने हो या होने वाला हो।
आत्मरक्षा को साबित करने की जिम्मेदारी अभियुक्त की होती है
1-आपराधिक मुकदमों में अभियुक्त को आत्मरक्षा के अधिकार के लिए निवेदन करना चाहिए।
2-ये जिम्मेदारी अभियुक्त की होती है कि वह तथ्यों व परिस्थितियों के द्वारा ये साबित करे कि उसका काम आत्मरक्षा में किया गया है।
3-आत्मरक्षा के अधिकार का प्रश्न केवल अभियोग द्वारा तथ्यों व परिस्थितियों के साबित करने के बाद ही उठाया जा सकता है ।
4-यदि अभियुक्त आत्मरक्षा के अधिकार की गुहार नहीं कर पाता है, तब भी न्यायालय को ये अधिकार है कि अगर उसे उचित सबूत मिले तो वह इस बात पर गौर करे। यदि उपलब्ध साक्ष्यों से ये न्याय संगत लगे तब ये निवेदन सर्वप्रथम अपील में भी उठाया जा सकता है ।
5-अभियुक्त पर घाव के निशान आत्मरक्षा के दावे को साबित करने के लिए मददगार साबित हो सकते हैं ।
आत्मरक्षा का अधिकार कब प्राप्त नहीं
1- यदि लोक सेवक या सरकारी कर्मचारी कोई कार्य करता है, जिससे मृत्यु या नुकसान की आशंका युक्ति युक्त रुप से नहीं होती है । और वह सद्भावनापूर्वक अपने पद पर काम करता है ।
2-कोई व्यक्ति जो लोक सेवक के निर्देश पर कोई कार्य करे या करने की कोशिश करे। उदाहरण- कोर्ट के लाठीचार्ज के आदेश, पुलिस की कार्रवाई।
3-यदि कोई कार्य उचित देखभाल व सावधानी से किया जाए तब उसे सद्भावनापूर्वक किया गया माना जायेगा।
4-ऐसे समय में जब सुरक्षा के लिए उचित प्राधिकारियों की सहायता प्राप्त करने के लिए समय हो।
5-स्वयं या संपत्ति की रक्षा के लिए उतने ही बल के प्रयोग का अधिकार है, जितना स्वयं की रक्षा के लिए जरूरी हो।
6-किसी विकृतचित्त व्यक्ति(अपरिपक्व समझ के शिशु, पागल व्यक्ति , शराबी) के खिलाफ आत्मरक्षा का अधिकार है।
7-किसी आक्रमण करने वाले को जान से मारा जा सकता है, अगर उस हमलावर से मौत, बलात्कार, अप्राकृतिक कार्य, अपहरण आदि की आशंका हो।
8-सुप्रीम कोर्ट ने आत्मरक्षा के अधिकार से जुडे मामले में अपने निर्णय में कहा था कि कानून का पालन करने वाले लोगों को कायर बनकर रहने की जरूरत नहीं है, खासकर तब, जबकि आपके ऊपर गैरकानूनी तरीके से हमला किया जाए।
संपत्ति की रक्षा का अधिकार
1- संपत्ति के वास्तविक मालिक को अपना कब्जा बनाए रखने का अधिकार है ।
2-संपत्ति पर जबरदस्ती कब्जा जमाए रखने वाला व्यक्ति कब्जे को बनाए रखने की प्रार्थना नहीं कर सकता है ।
3-कोई बाहरी व्यक्ति अचानक खाली पड़ी जमीन पर कब्जा करके वास्तविक मालिक को बेदखल नहीं कर सकता है ।
4-जमीन के वास्तविक मालिक को अधिकार है कि वो कानूनी तरीके से बाहरी व्यक्ति को अपनी जमीन में ना घुसने दे।
5-बाहरी व्यक्ति को शारीरिक हमले से आत्मरक्षा का अधिकार तभी होगा जब वो संपत्ति का यह अधिकार लंबे समय से इस्तेमाल कर रहा हो।
6-अगर वास्तविक मालिक बलपूर्वक अचानक जमीन पर कब्जा करने वाले बाहरी व्यक्ति से बलपूर्वक अपनी जमीन को प्राप्त करेगा , तो वह किसी अपराध का दोषी नहीं होगा ।
7-यदि कोई बाहरी व्यक्ति असली मालिक को जानते हुए भी गलती से किसी जमीन के टुकड़े को लंबे समय तक इस्तेमाल करता है तो असली मालिक कानून को अपने हाथ में नहीं ले सकता है। उसे कानूनी उपचारों की मदद लेनी होगी।
8-आईपीसी की धारा 103 के मुताबिक लूट, रात्रि में घर में सेंध,आगजनी,चोरी आदि की स्थिति में अगर जान का खतरा हो तो आक्रमणकारी की हत्या करना न्याय संगत होगा।
इसलिए आपके ऊपर जब भी गैरकानूनी तरीके से हमला किया जाए, आप निडर होकर अपनी आत्मरक्षा करें।
संपत्ति की निजी प्रतिरक्षा का अधिकार
1-संपत्ति की निजी प्रतिरक्षा का अधिकार तब शुरु होता है , जब संपत्ति के संकट की युक्तियुक्त आशंका शुरु होती है ।
2-संपत्ति का निजी प्रतिरक्षा का अधिकार चोरी के खिलाफ अपराधी के संपत्ति सहित पहुंच से बाहर हो जाने तक होती है अथवा लोक प्राधिकारियों की सहायता प्राप्त कर लेने तक बनी रहती है ।
3-संपत्ति का निजी प्रतिरक्षा अधिकार लूट के विरुद्ध तब तक बना रहता है , जब तक कि अपराधी किसी व्यक्ति की मृत्यु या उसे नुकसान पहुंचाने तक विरोध करता है या फिर कोशिश करता रहता है । अथवा जब तक तुरंत मौत का या निजी विरोध का भय बना रहता है ।
4-संपत्ति की प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार अत्याचार के खिलाफ तब तक बना रहता है । जब तक कि अपराधी अत्याचार करता रहता है ।
5-संपत्ति का निजी प्रतिरक्षा का अधिकार रात में घर में सेंध लगाने के खिलाफ तब तक बना रहता है । जब तक सेंध से शुरु हुआ गृह अत्याचार जारी रहता है
तहसीलदार जिले की प्रशासकीय ढांचे का महत्वपूर्ण हिस्सा होते हैं। यह तहसील (उपखंड) के मुख्य राजस्व प्रभारी के तौर पर कार्य करते हैं। तहसीलदार राज्य सरकार के द्वितीय श्रेणी के राजपत्रित अधिकारी होते हैं।
इंग्लैंड की प्रिवी काउंसिल ने 1637 में अपने फैसले में कहा कि वकीलों को समाज के अनुसार कपड़े पहनने चाहिए। उसी समय से वकीलों ने पूरी लंबाई के काले रंग के गाउन पहनने की शुरुआत की।
भारत में डॉक्टरों के सफेद कोट की शुरुआत बीसवीं सदी में अंग्रेजों के समय में हुई। जो देश की आजादी के बाद आज भी चला आ रहा है।
भारतीय प्रशासनिक व्यवस्था के अंतर्गत जिले की तहसील (उपखंड) में तहसीलदार के समान ही राजस्व और मजिस्ट्रेट के कर्तव्यों का निर्वहन करने वाला नायब-तहसीलदार होता है। नायब तहसीलदार राजस्व के मामलों में तहसीलदार की ही तरह सहायक कलेक्टर, ग्रेड II की शक्तियों का उपयोग करता है। आइए जानते हैं कि नायब तहसीलदार के कार्य क्या हैं।
नायब तहसीलदार के कार्य:-
भारतीय लोक प्रशासन में तहसीलदार जिले की प्रशासकीय ढांचे का महत्वपूर्ण हिस्सा होते हैं। यह तहसील (उपखंड) के मुख्य राजस्व प्रभारी के तौर पर कार्य करते हैं। तहसीदार राज्य सरकार के द्वितीय श्रेणी के राजपत्रित अधिकारी होते हैं। आइए जानते हैं कि तहसीलदार के कार्य क्या हैं:-
भारतीय लोक प्रशासन में जिला प्रशासन की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। जिसके शीर्ष पर कलेक्टर होता है, जबकि उसके अधीन तहसील (उपखंड) में डिप्टी कलेक्टर या उप जिला मजिस्ट्रेट होता है। राजस्व कानून के तहत, उसमें कलेक्टर की शक्तियों ही निहित होती है। आइए जानते हैं कि डिप्टी कलेक्टर या उप जिला मजिस्ट्रेट के क्या कार्य होते हैं।
डिप्टी कलेक्टर या उप जिला मजिस्ट्रेट के कार्य:-
भारतीय लोक प्रशासन में जिला कलेक्टर या जिला मजिस्ट्रेट की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। वह जिले का मुख्य कार्यकारी, प्रशासनिक और राजस्व अधिकारी होने के साथ ही कल्याण और नियोजित विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसके अलावा जिले में कार्य कर रहीं विभिन्न सरकारी एजेंसियों के मध्य समन्वय स्थापित करने के चलते वह 'जिला प्रबंधक' की भी भूमिका निभाता है। आइए जानते हैं कि जिला कलेक्टर या जिला मजिस्ट्रेट की भूमिका क्या है। -
जिला कलेक्टर के रुप में भूमिका:-
जिला मजिस्ट्रेट के रुप में भूमिका:-
जिला मुख्य प्रोटोकोल अधिकारी के रुप में भूमिका:-
जिला मुख्य विकास अधिकारी के रुप में भू्मिका क्या है:-
जिला निर्वाचन अधिकारी के रुप में भूमिका:-
आप जब देश के किसी भी न्यायालय में जाते हैं तो वकीलों को काला कोट और सफेद शर्ट ही पहने हुए ही क्यों देखते हैं। क्या आप जानते हैं कि वकील काले कोट क्यों पहनते हैं और सफेद बैंड क्यों लगाते हैं। आइए जानते हैं।-
अधिवक्ता (वकील) काला कोट क्यों पहनते हैं
भारतीय दण्ड संहिता की धारा 96 से लेकर 106 तक की धारा में सभी व्यक्तियों को आत्मरक्षा का अधिकार दिया गया है । व्यक्ति स्वयं की रक्षा किसी भी हमले या अंकुश या स्वयं की संपत्ति की चोरी, डकैती, शरारत व अपराधिक अतिचार के खिलाफ कर सकता है।
मौलिक अधिकार उन अधिकारों को कहा जाता है जो व्यक्ति के जीवन के लिये मौलिक होने के कारण संविधान द्वारा नागरिकों को प्रदान किये जाते हैं और जिनमें राज्य द्वार हस्तक्षेप नही किया जा सकता। ये ऐसे अधिकार हैं जो व्यक्ति के व्यक्तित्व के पूर्ण विकास के लिये आवश्यक हैं और जिनके बिना मनुष्य अपना पूर्ण विकास नही कर सकता है। इन अधिकारों का उल्लंघन नही किया जा सकता है। मौलिक अधिकार न्याय योग्य हैं तथा समाज के प्रत्येक व्यक्ति को समान रूप से प्राप्त होते हैं। मौलिक अधिकारों का वर्णन संविधान के भाग-3 में अनुच्छेद 12 से 35 तक वर्णन किया गया है। भारतीय संविधान में मौलिक अधिकार अमेरिका के संविधान से लिए गये हैं ।
भारत संविधान में कुल छ: मौलिक अधिकार हैं
1.समानता का अधिकार (अनुच्छेद 14 से 18 तक) –
अनुच्छेद 14 के अनुसार सभी व्यक्तियों को राज्य के द्वारा कानून के समक्ष समानता और कानून का समान संरक्षण प्राप्त होगा ।
अनुच्छेद 15 के अनुसार:- राज्य किसी भी नागरिक के विरूद्ध धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग तथा जन्म स्थान आदि के आधार पर कोई विभेद नहीं करेगा।
बालकों और स्त्रियों की स्वाभाविक प्रवृत्ति को ध्यान में रखकर उनके संरक्षण के लिये उपबन्ध बनाने का अधिकार अनुच्छेद 15(3) के तहत राज्य को प्राप्त है।
अनुच्छेद 15(4) के अनुसार राज्य सामाजिक और शैक्षणिक दृष्टि से पिछडे और SC, ST के लिए विशेष प्रावधान कर सकता है।
अनुच्छेद 16 के अनुसार देश के समस्त नागरिकों को शासकीय सेवाओं में अवसर की समानता होगी ।
अनुच्छेद 16(3) के अनुसार किसी क्षेत्र में नौकरी देने के लिए निवास सम्बन्धी शर्त लगाई जा सकती है ।
अनुच्छेद 16(4) के अनुसार देश के पिछडे नागरिकों को उचित प्रतिनिधित्व के अभाव में आरक्षण की व्यवस्था की जा सकती है
अनुच्छेद 17 के अनुसार अस्पृश्यता का अन्त किया गया है । इसको समाप्त करने के लिए संसद ने अस्पृश्यता अपराध अधिनियम 1955 के तहत दण्डनीय बना दिया है । बाद में 1976 में इसको संशोधित करके सिविल अधिकार संरक्षण अधिनियम 1976 बनाया गया ।
अनुच्छेद 18 के अनुसार शिक्षा और सैनिक क्षेत्र को छोड़कर राज्य द्वारा सभी उपाधियों का अन्त कर दिया गया है
अनुच्छेद 18(2) के अनुसार भारत का कोई भी नागरिक किसी भी विदेशी पुरस्कार को राष्ट्रपति की अनुमति के बिना ग्रहण नहीं कर सकता ।
2.स्वतंत्रता का अधिकारः-(अनुच्छेद 19 से 22 तक)
अनुच्छेद 19 के अनुसार नागरिक को 6 प्रकार की स्वतंत्रतायें दी गई है–
अनुच्छेद 19(A) – भाषण और विचार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता। अनुच्छेद 19(1) के अन्तर्गत प्रेस को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता दी गई है । इसी के तहत देश के नागरिकों को राष्ट्रीय ध्वज को फहराने की स्वतंत्रता दी गई है ! संविधान के प्रथम संशोधन अधिनियम 1951 के द्वारा विचार एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को सीमित कर दिया गया है। सरकार राज्य की सुरक्षा, सार्वजनिक कानून व्यवस्था, सदाचार, न्यायालय की अवमानना, विदेशी राज्यों से संबंध तथा अपराध के लिए उत्तेजित करना आदि के आधार पर विचार एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर प्रतिबंध लगा सकती है।
अनुच्छेद 19(B) के तहत शांतिपूर्ण तथा बिना हथियारों के नागरिकों को सम्मेलन करने और जुलूस निकालने का अधिकार होगा । राज्यों की सार्वजनिक सुरक्षा एवं शान्ति व्यवस्था के हित में इस। स्वतंत्रता को सीमित किया जा सकता है।
अनुच्छेद 19(C) भारतीय नागरिकों को संघ या संगठन बनाने की स्वतंत्रता दी गई हैं ! लेकिन सैनिकों को ऐसी स्वतंत्रता नहीं दी गई है
अनुच्छेद 19(D) देश के किसी भी क्षेत्र मे स्वतंत्रता पूर्वक भ्रमण करने की स्वतंत्रता ।
अनुच्छेद 19(E) देश के किसी क्षेत्र में स्थाई निवास की स्वतंत्रता। (जम्मू कश्मीर को छोड़कर)
अनुच्छेद 19(G) कोई भी व्यापार या कारोबार करने की स्वतंत्रता ।
अनुच्छेद 20 के अनुसार अपराधों के लिए दोष सिद्धि के संबध में संरक्षण दिया गया है
अनुच्छेद 21 के अनुसारः- किसी भी व्यक्ति को विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अतिरिक्त उसके जीवन और शरीर की स्वतंत्रता के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता ।
अनुच्छेद 21(क) के अनुसार 86वें संविधान संशोधन अधिनियम 2002 के तहत 6 से 14 वर्ष तक के बच्चों को अनिवार्य और निशुल्क शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार दिया गया है ।
अनुच्छेद 22 के अनुसार किसी भी व्यक्ति को बिना कारण बताए गिरफ्तार नहीं किया जा सकता और गिरफ्तार व्यक्ति को 24 घण्टे के अन्दर मजिस्ट्रेट के सामने पेश करना अनिवार्य है ।
अनुच्छेद 23 के अनुसार मानव व्यापार व बेगार तथा बलात श्रम पर प्रतिबंध लगाया गया है । लेकिन राज्य सार्वजनिक उद्देश्यों के लिए
सार्वजनिक सेवा या श्रम योजना लागू कर सकती है। राज्य इस सेवा में धर्म, मूलवंश, जाति या वर्ग के आधार पर कोई भेदभाव नहीं करेगा। बंधुआ मजदूरी समाप्त करने के लिए 1975 में बंधुआ मजदूरी का उन्मूलन अधिनियम पारित किया गया ।
अनुच्छेद 24 के अनुसार बाल श्रम का निषेध किया गया है जिसके अनुसार 14 वर्ष से कम उम्र के किसी भी बच्चे को कारखानो, खदानों या खतरनाक कार्यों में नहीं लगाया जा सकता ।
अनुच्छेद 25 के अनुसार देश के प्रत्येक नागरिक को किसी भी धर्म को मानने व आचरण करने और प्रचार करने का अधिकार है ! लेकिन सार्वजनिक व्यवस्था व समाज कल्याण एवं सुधार आदि के अन्र्तगत इस पर रोक लगाई जा सकती है
अनुच्छेद 26 के अनुसार धार्मिक प्रयोजन के लिए संस्था बनाने, उसका पोषण करने और धार्मिक कार्यों के प्रबन्ध के लिये सम्पत्ति अर्जित करने का अधिकार है ।
अनुच्छेद 27 के अनुसारः- किसी भी व्यक्ति को किसी धर्म या सम्प्रदाय विशेष के पोषण हेतु कर देने के लिए बाध्य नहीं किया जाएगा ।
अनुच्छेद 28 के अनुसारः- राज्य निधि से वित्त पोषित या आर्थिक सहायता प्राप्त शिक्षण संस्थाओं में धार्मिक शिक्षा नहीं दी जाएगी और न ही किसी व्यक्ति को धार्मिक शिक्षा या धार्मिक अनुष्ठान में भाग लेने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता।
अनुच्छेद 29 के अनुसार देश के प्रत्येक नागरिक को अपनी भाषाए लिपि या संस्कृति को सुरक्षित रखने का पूर्ण अधिकार होगा ! राज्य द्वारा आर्थिक सहायता प्राप्त किसी भी शिक्षण संस्था में किसी भी नागरिक को धर्म व मूलवंश व जाति और भाषा आदि के आधार पर प्रवेश लेने से वंचित नही किया जा सकता ।
अनुच्छेद 30 के अनुसारः- धर्म या भाषा पर आधारित सभी अल्प संख्यक वर्गो को अपनी पसंद की शिक्षण संस्थाओं की स्थापना करने और प्रशासन का अधिकार होगा और राज्य इस आधार पर शिक्षा संस्थाओ को आर्थिक सहायता देने के लिए कोई विभेद नही करेगा ।
अनुच्छेद 32 के अनुसार यह अधिकार मौलिक अधिकारों के लिए प्रभावी कार्यवाईयाॅं न्यायलय के द्वारा करवाता है । इस अधिकार के तहत यदि किसी व्यक्ति के मौलिक अधिकार का उल्लघन हुआ है तो वह सीधे सर्वोच्च न्यायालय में जा सकता है ।
अनुच्छेद 32 को डा. भीमराव अम्वेडकर ने भारतीय संविधान की आत्मा कहा है।
अनुच्छेद 32 के तहत सर्वोच्च न्यायालय को और अनुच्छेद 226 के तहत उच्च न्यायालय को मौलिक अधिकारों के संरक्षण हेतु 5 रिटे जारी करने का अधिकार है –
मौलिक अधिकारों का निलम्बन
अनुच्छेद 33 संसद को यह शक्ति प्रदान करती है वि वह स्वतंत्र बलों, अद्धसैनिक बलों, खूफिया ऐजेन्सियों के सदस्यों के संबंध में मौलिक अधिकारो को प्रतिबंधित कर सकती है। ताकि वे अपने कर्तव्यों का उचित पालन कर सकें और उनके अनुशासन बना रहे।
अनुच्छेद 34 मौलिक अधिकारों पर तब प्रतिबंध लगाता है जब भारत में कही भी सेना विधि (मार्शल ला) लागू हो मार्शल लाॅं के क्रियान्वयन के समय सैन्य प्रशासन के पास जरूरी कदम उठाने के लिए असाधारण अधिकार मिल जाते हैं वे अधिकारों पर प्रतिबंध यहां तक कि किसी मामले में नागरिकों को मृत्युदंड तक लागू कर सकता है।
अनुच्छेद 352 के तहत राष्ट्रपति द्वारा राष्ट्रीय आपात की घोषणा होने पर उसके द्वारा अनुच्छेद 359 के तहत सभी मौलिक अधिकार निलम्बित किये जा सकते हैं । परन्तु 44वें संविधान संशोधन के पश्चात अनुच्छेद 20 व 21 किसी भी स्थिति में निलबिंत नही किये जा सकते ।
नोट – अनुच्छेद – 15,16,19,29 व 30 के अन्तर्गत प्राप्त मौलिक अधिकार केवल भारतीय नागरिकों के लिए है । जबकि शेष सभी अधिकार सभी व्यक्तियों के लिये हैं ।