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निचली अदालत से निराश, सुप्रीम कोर्ट ने जगाई आस

निचली अदालत से निराश, सुप्रीम कोर्ट ने जगाई आस

नई दिल्ली। देश का नागरिक जब किसी मामले में पीड़ित होता है तो वह न्याय की आस में न्यायालय की शरण लेता है कि उसे न्याय मिलेगा। लेकिन दिल्ली की एक अदालत ने एक बुजर्ग पिता के इस भरोसे को तोड़ दिया। और वह 19 वर्ष से न्याय पाने की आस में न्यायालय का चक्कर लगा रहे हैं। हालांकि सर्वोच्च न्यायालय ने बुजुर्ग नवल किशोर पर दया दिखाते हुए, उनकी चिट्ठी को जनहित याचिका में बदल दिया है और इसकी सूचना नवल किशोर को एसएमएस के जरिए दे दी है। हालांकि अभी तक मामले की सुनवाई नहीं हुई है। 

बुजुर्ग नवल किशोर का कहना है कि उनका 17 साल का बेटा बिजेन्द्र अक्टूबर 2000 में दिल्ली की आजादपुर मंडी से ट्रक में शकरकंद लाद कर उत्तर प्रदेश में शामली जा रहा था। इस दौरान कैराना के पास कुछ बदमाशों ने रास्ते में ट्रक रुकवाने की कोशिश की। जब ड्राइवर ने ट्रक को नहीं रोका तो बदमाशों ने ट्रक पर गोली चला दी। यह गोली बिजेन्दर के गले में लग गयी और उसकी मौत हो गई। जब इस घटना की जानकारी नवल किशोर को मिली तो उन्होंने मुजफ्फर नगर की न्यायालय में जाकर इस घटना की एक लिखित शिकायत दी। जब कुछ समय बाद नवल किशोर को न्याय मिलने की उम्मीद नहीं नजर आयी। तो उन्होंने न्याय मिलने की आशंका जताते हुए सर्वोच्च न्यायालय से मुकदमा दिल्ली स्थानांतरित करने की मांग की। सर्वोच्च न्यायालय ने 7 फरवरी 2011 को कैराना मुजफ्फरनगर के न्यायालय से मुकदमा दिल्ली की कड़कड़डूमा न्यायालय को स्थानांतरित कर दिया। और मुकदमे का सभी रिकॉर्ड दो सप्ताह के अंदर मुजफ्फरनगर से दिल्ली भेजने का आदेश दिया। लेकिन मुकदमे का सभी रिकॉर्ड कड़कड़डूमा न्यायालय तक नहीं पहुंचा। केवल पूरक आरोपपत्र कड़कड़डूमा न्यायालय पहुंचा। जब केस का रिकार्ड दिल्ली की न्यायालय में नहीं पहुंचा तो नवल किशोर ने सर्वोच्च न्यायालय में फिर अर्जी डाली। सर्वोच्च न्यायालय ने सितंबर 2011 में दिल्ली और मुजफ्फर नगर दोनों ही न्यायालयों से रिपोर्ट मांगी। दिल्ली की कड़कड़डूमा न्यायालय ने कहा कि रिकार्ड नहीं मिला है और मुजफ्फरनगर की न्यायालय ने कहा कि फाइल डाक से भेजी गई है। न्यायालय ने मामले पर राज्य के वकील से सुझाव मांगते हुए सुनवाई 21 नवंबर तक टाल दी, लेकिन इस बीच कड़कड़डूमा अदालत ने सर्वोच्च न्यायालय को चिट्ठी भेजकर बताया कि रिकॉर्ड मिल गया है, जिस पर न्यायालय ने 21 नवंबर की सुनवाई में अपना फैसला सुना दिया। इस फैसले में सारे अभियुक्तों को बरी कर दिया गया।

नवल किशोर का कहना है कि जब अगले दिन 22 नवंबर 2011 को उसने कड़कड़डूमा न्यायालय में अर्जी देकर रिकार्ड देखा तो पाया कि केस का पूरा रिकार्ड नहीं पहुंचा था। उसके बाद से वह बाकी रिकार्ड की फाइलें स्थानांतरित कराने की गुहार लेकर न्यायालयों के चक्कर काट रहे हैं। इस बीच उन्होंने कई बार सर्वोच्च न्यायालय को चिट्ठी भेज कर अपनी बात बताने का प्रयास किया, लेकिन बात नहीं पहुंच पायी, परन्तु इस बार उसकी हताशा भरी चिट्ठी पर सर्वोच्च न्यायालय ने संज्ञान लेकर नवल किशोर की चिट्ठी को जनहित याचिका में बदल दिया है। सर्वोच्च न्यायालय ने इसकी सूचना नवल किशोर के मोबाइल पर एसएमएस के जरिए भेज दी है। हालांकि न्यायालय ने अभी तक मामले की सुनवाई की तारीख निश्चित नहीं की है।

नागरिक का मौलिक कर्तव्य

(क) संविधान का पालन करें और उसके आदर्शों, राष्ट्र ध्वज और राष्ट्र्गान का आदर करें। 

(ख) स्वतंत्रता के लिए हमारे राष्ट्रीय आन्दोलन प्रेरित करने वाले उच्च आदर्शो को हृदय में संजोए रखें व उनका पालन करें।

(ग) भारत की प्रभुता एकता व अखंडता की रक्षा करें और उसे अक्षुण्ण बनाये रखें। 

(घ) देश की रक्षा करें और आवाह्न किए जाने पर राष्ट् की सेवा करें। 

(ङ) भारत के सभी लोग समरसता और सम्मान एवं भ्रातृत्व की भावना का निर्माण करें जो धर्म, भाषा और प्रदेश या वर्ग के भेदभाव पर आधारित न हों, उन सभी प्रथाओं का त्याग करें जो महिलाओं के सम्मान के विरुद्ध हों।

(च) हमारी सामाजिक संस्कृति की गौरवशाली परम्परा का महत्त्व समझें और उसका परिरक्षण करें। 

(छ) प्राकृतिक पर्यावरण जिसके अंतर्गत वन, झील,नदी वन्य प्राणी आदि आते हैं की रक्षा व संवर्धन करें तथा प्राणी मात्र के प्रति दयाभाव रखें।

(ज) वैज्ञानिक दृष्टिकोण मानवतावाद व ज्ञानार्जन तथा सुधार की भावना का विकास करें । 

(झ) सार्वजनिक सम्पत्ति को सुरक्षित रखें व हिंसा से दूर रहें। 

(ञ) व्यक्तिगत और सामूहिक गतिविधियों के सभी क्षेत्रों में सतत उत्कर्ष की ओर बढ़ने का प्रयास करें, जिससे राष्ट्र प्रगति करते हुए प्रयात्न और उपलब्धि की नई ऊँचाइयों को छू ले।

(ट) यदि आप माता-पिता या संरक्षक हैं तो 6 वर्ष से 14 वर्ष आयु वाले अपने या प्रतिपाल्य (यथास्थिति) बच्चे को शिक्षा के अवसर प्रदान करें।

बंदी (कैदी) का अधिकार